जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण गठित करने के संबंध में 12 मार्च 2018 को एक अधिसूचना जारी की. न्यायाधिकरण का मुख्यालय दिल्ली में होगा और भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा मनोनीत निम्नलिखित व्यक्ति इसके सदस्य होंगे.
अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर
सदस्य के रूप में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. रवि रंजन
सदस्य के रूप में दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदरमीत कौर कोचर
महानदी विवाद
छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्यों के बीच चल रहा यह विवाद लगभग 35 वर्ष पुराना है. महानदी के जल-बँटवारे को लेकर पहला समझौता अविभाजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओड़िशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुआ था. इसमें तय किया गया था कि नदी पर बाँध निर्माण सम्बन्धी कोई विवाद सामने आता है तो उसका निराकरण अन्तरराज्यीय परिषद करेगी.
इस दौरान केंद्र सरकार द्वारा संबलपुर में हीराकुंड बांध बनाया गया जिसे कुछ वर्ष पूर्व ओडिशा को सौंप दिया गया. हीराकुंड बांध तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82,432 किलोमीटर है जिसमें से 71,424 किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है जो इसके संपूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का लगभग 86 प्रतिशत है जबकि छत्तीसगढ़ द्वारा महानदी पर बने हीराकुंड बांध का केवल 25 प्रतिशत पानी ही उपयोग किया जाता है. दूसरी ओर ओडिशा सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जानकारी दिए बिना ही अपने राज्य में बांध निर्माण का काम शुरू किया है.
ओड़िशा का दावा है कि पिछले दस सालों में उड़ीसा में महानदी के जल बहाव में एक तिहाई की कमी हुई है जिसके चलते प्रस्तावित बांध के काम को रोका जाए.
न्यायाधिकरण के गठन की पृष्ठभूमि
ओडिशा सरकार द्वारा दायर मुकदमे में 23 जनवरी 2018 को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के बाद न्यायाधिकरण का गठन किया गया. ओडिशा सरकार ने मांग की थी कि अन्तरराज्यीय नदी जल विवाद कानून, 1956 के अंतर्गत अन्तरराज्यीय नदी महानदी और उसकी नदी घाटी पर जल विवाद को फैसले के लिए न्यायाधिकरण को सौंप दिया जाए.
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