रक्षा मंत्री अरुण जेटली द्वारा 28 मई 2017 को कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले के चल्लेकेर स्थान के समीप वारवू में देश के पहले वैमानिकीय परीक्षण रेंज (एटीआर) का उद्घाटन किया गया. यह परीक्षण रेंज मानवरहित विमानों के लिए बनाया गया है.
यहां उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग रक्षा अनुसंधान और विकास से जुड़ी विभिन्न सरकारी एजेंसियां कर सकेंगी.
वैमानिकीय परीक्षण रेंज (एटीआर)
• विभिन्न प्रकार के मानवरहित टोही विमानों के परीक्षण के लिए इस रेंज का विकास लगभग 4300 एकड़ में 1300 करोड़ रुपए की लागत से हुआ है.
• यहां के 4090 एकड़ स्थान पर तकनीकी और ढांचागत सुविधाओं का विकास किया गया है जबकि एटीआर से तीन किमी दूर करीब 200 एकड़ में आवासीय और परिवहन सुविधाओं का विकास किया गया है.
• इस रेंज का विकास रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा किया गया.
• एटीआर का आंशिक उपयोग दिसम्बर 2010 से हो रहा है. एटीआर के इस बहु-एजेंसी कॉम्पलेक्स में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, भारतीय विज्ञान संस्थान के भी अपने-अपने केंद्र होंगे.
पृष्ठभूमि
मई 2008 में कैंपेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का परिचालन शुरु होने के बाद डीआरडीओ को परीक्षण सुवधिाओं के विकास के लिए चित्रदुर्गा जिले के चल्लेकेर में जमीन आवंटित की गई जहां एटीआर का विकास किया गया. एटीआर का विकास कई मुश्किलों को पार करने के बाद हो पाया है.
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के परियोजना के लिए आवश्यक मंजूरी देने में देरी के कारण राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने अगस्त 2013 में एटीआर के निर्माण कार्य पर अस्थायी रोक लगा दी थी. दो वर्ष पूर्व यह केंद्र उस वक्त चर्चा में आया था जब पाकिस्तानी मीडिया के ने यहां गुप्त तरीके से यूरेनियम संवर्धन सुविधाओं का विकास किए जाने का दावा किया था. हालांकि रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने इस दावे को खारिज कर दिया था.
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