सुप्रीम कोर्ट ने 09 मई 2018 को कहा कि ट्रेन से उतरते समय या चढ़ते समय यात्री की मौत या उसका घायल होना ‘अप्रिय घटना’ है और ऐसी स्थिति में यात्री मुआवजे का हकदार है तथा इस स्थिति को उसका लापरवाही नहीं माना जा सकता है.
यह निर्णय न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यामूर्ति रोहिंनटन एफ नरीमन की पीठ ने दिया हैं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश:
• मुआवजे का प्रावधान सभी तरह की दुर्घटनाओं पर लागू होगा. हादसे के लिए यात्री की लापरवाही को कारण बताकर रेल मंत्रालय मुआवजे देने से नहीं बच सकता.
• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेल के अंदर होनेवाले हादसे अप्रिय घटना हैं और इसमें मुआवजा मिले.
• कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ रेलवे परिसर में किसी शव या घायल के होने से यह निर्णय नहीं हो जाएगा कि घायल या मृत मुआवजे के संबंध में ‘वास्तविक यात्री’ था.
• हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यात्री के पास टिकट के न होने से उसे मुआवजे से मना नहीं किया जा सकता है और मुआवजे के दावेदार को जरूरी दस्तावेज पेश कर अपने मामले को साबित करना होगा.
रेलवे अधिनियम, 1989:
रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 124 (ए) के अनुसार रेल के सफर के दौरान अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश में या फिर नशे/पागलपन में खुद से किए गए आपराधिक कृत्य में मारा या घायल हो जाता है तो ऐसी स्थिति में वह रेलवे प्रशासन से मुआवजा पाने का हकदार नहीं होगा. इस मामले में अलग-अलग हाई कोर्टों ने एक-दूसरे के विपरीत फैसले दिए हैं. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को खत्म कर दिया है. उसने किसी भी तरह के हादसे में पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए रेलवे को जिम्मेदार बताया है.
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पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पटना हाई कोर्ट के एक आदेश को बनाए रखते हुए दिया है. मामले में 20 अगस्त 2002 को बिहार में करौता से खुसरूपुर की यात्रा के दौरान यात्री की ट्रेन से गिरकर मौत हो गई थी. रेलवे ट्रिब्यूनल ने कहा की यात्री लटककर यात्रा कर रहा था, इसलिए दुर्घटना हुई.
ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ महिला ने पटना हाई कोर्ट में अपील की. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में आश्रित महिला को चार लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया. इस आदेश के खिलाफ रेल मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट आया था.
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