सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की 14 शहरों में सर्वेक्षण के आधार पर आई रिपोर्ट से पता चला है कि गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के मामले में दिल्ली सबसे बुरी स्थिति में है. सीएसई ने 24 अगस्त 2018 को कोलकाता में 'द अर्बन कम्यूट' शीर्षक से रिपोर्ट जारी की. सीएसई ने देश के 14 शहरों में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण का अध्ययन किया है.
रिपोर्ट में पता चला है कि गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के मामले में दिल्ली की स्थिति सबसे खराब है. रिपोर्ट के अनुसार, मेगा सिटीज़ में कोलकाता और मुंबई की स्थिति दिल्ली से बेहतर है.
अध्ययन का आधार |
सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) ने अपने अध्ययन में 14 में से 6 शहरों- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नै, बेंगलुरू और हैदराबाद को मेगा शहरों की श्रेणी में रखा है, जबकि बाकी बचे 8 शहरों को मेट्रपॉलिटन शहरों की श्रेणी में रखा है. विश्लेषण में इन शहरों में गाड़ियों से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर जैसे खतरनाक प्रदूषकों व नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन के साथ-साथ शहरों में ईंधन की खपत को आधार बनाया है. |
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
• रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की गाड़ियों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद लोग पर्सनल गाड़ियों का इस्तेमाल अधिक करते हैं. जबकि मुंबई और कोलकाता में लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तथा पैदल चलना भी पसंद करते हैं.
• रिपोर्ट में बेंगलुरू, हैदराबाद और चेन्नई का स्कोर भी खराब रहा है. यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट दिल्ली से अच्छा नहीं है, इसके बावजूद इन शहरों में वाहनों का प्रदूषण दिल्ली से कम है.
• सबसे कम प्रदूषण मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में है. वाहनों से होने वाले प्रदूषण और ईंधन की खपत के मामले में कोलकाता 7वें और मुंबई 10वें स्थान पर है.
• वाहनों से उत्सर्जन और ईंधन की खपत के मामले में मेगा शहरों में कोलकाता की स्थिति सबसे अच्छी है. इसकी मुख्य वजह पब्लिक ट्रांसपोर्ट कल्चर, कॉम्पैक्ट सिटी डिजाइन, सड़कों का उच्च घनत्व, यात्रा की कम दूरियां और सड़कों व पार्किंग के लिए जमीन की सीमित उपलब्धता बताया गया है.
रिपोर्ट के अन्य आंकड़े
रिपोर्ट में पिछले कुछ सालों में सड़कों पर गाड़ियों की तादाद में बेतहाशा वृद्धि को ग्रीनहाउस गैस में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार बताया गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 से 2008 के बीच 57 सालों में भारत में पंजीकृत गाड़ियों की तादाद 10.5 करोड़ थी लेकिन उसके बाद के महज 6 सालों (2009-2015) में इतनी ही गाड़ियां पंजीकृत हुईं. रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नै का प्रदर्शन खराब रहा जिसकी मुख्य वजह दिल्ली के मुकाबले इन शहरों में कम पब्लिक ट्रांसपोर्ट है.
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