हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का 19 मार्च 2018 को नई दिल्ली में निधन हो गया. वे 83 वर्ष के थे. केदारनाथ सिंह रचना प्रक्रिया, साहित्य और हिंदी को लेकर राजनीति पर खुलकर बात करते थे. उन्हें जटिल विषयों पर सहज शब्दावली का प्रयोग करने के लिए भी जाना जाता है.
केदारनाथ सिंह के बारे में
• केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया में हुआ था. उनकी हाई स्कूल से लेकर एमए तक की शिक्षा बनारस में हुई.
• वर्ष 1964 में उन्होंने 'आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान' विषय पर पीएचडी की.
• वर्ष 1959 में अज्ञेय द्वारा संपादित 'तीसरा सप्तक' के सहयोगी कवि के रूप में उनकी कविताएं शामिल की गई थीं.
• उनका पहला कविता संग्रह 'अभी बिल्कुल अभी' 1960 में प्रकाशित हुआ था.
• केदारनाथ सिंह ने अध्यापक के रूप में करियर की शुरुआत उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी से की थी.
• उन्होंने सेंट एंड्रयूज कॉलेज, गोरखपुर और उदित नारायण कॉलेज, पडरौना में भी अध्यापन किया.
• वर्ष 1976 से 1999 तक दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में अध्यापन किया.
• केदारनाथ सिंह को उनकी रचनाओं के लिए वर्ष 2013 में साहित्य के सबसे बड़े सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
• इसके अतिरिक्त उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और व्यास सम्मान सहित कई सम्मानों से पुरस्कृत किया गया था.
• उनकी प्रमुख कविता संग्रहों में ‘अभी बिलकुल अभी', 'जमीन पक रही है', 'यहां से देखो', 'बाघ', 'अकाल में सारस' और 'उत्तर कबीर’ शामिल हैं.
केदारनाथ सिंह की लेखनशैली
केदारनाथ सिंह की कविता सहज, आम बोलचाल की भाषा और छवियों से भरपूर है जिसे वे जटिल विषयों को व्यक्त करने के लिए उपयोग करते रहे हैं. उनकी कविताओं में एक ओर ग्रामीण जनजीवन की सहज लय रची-बसी दिखती है तो दूसरी ओर महानगरीय संस्कृति के बढ़ते असर के कारण ग्रामीण जनजीवन की पारंपरिक संवेदना में आ रहे बदलाव भी रेखांकित किये गये हैं. उनकी प्रमुख कविताओं में से एक “बाघ” 1980 के दशक के मध्य में प्रकाशित, कविता हिंदी साहित्य में सबसे व्यापक रूप से पढ़ी जाने वाली लंबी कविताओं में से एक है और कई विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में शामिल है. उनकी प्रमुख गद्य कृतियों में 'कल्पना और छायावाद', 'आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान', 'मेरे समय के शब्द' शामिल हैं.
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