पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ सीपीआई (एम) नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया, उन्होंने कोलकाता में अपने आवास पर अंतिम सांस ली. वह लंबे समय से बीमार थे और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) सहित अन्य बीमारियों से पीड़ित थे. उनके निधन के बाद राज्य में शोक की लहर दौड़ गयी है. बता दें कि जुलाई में उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था. भट्टाचार्य अपने परिवार में पत्नी और एक बेटी को छोड़ गए हैं.
बता दें कि वह कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बंगाली साहित्य में बीए (ऑनर्स) की डिग्री धारक थे. भट्टाचार्य सीपीएम की शीर्ष निर्णय लेने वाली निकाय पोलित ब्यूरो के भी पूर्व सदस्य थे. चलिये जानें उनके बारें में.
2000 से 2011 तक रहे थे सीएम:
बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे. बता दें कि भट्टाचार्य पिछले कुछ वर्षों से सार्वजनिक जीवन से दूर थे और कोलकाता में अपने घर पर ही अपना इलाज करा रहे थे. उनका निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान है.
Shocked and saddened by the sudden demise of the former Chief Minister Sri Buddhadeb Bhattacharjee. I have been knowing him for last several decades, and visited him a few times when he was ill and effectively confined to home in the last few years.
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) August 8, 2024
My very sincere condolences…
बुद्धदेव भट्टाचार्य का राजनीतिक करियर:
बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे. वह अंतिम मार्क्सवादी मुख्यमंत्री थे और ज्योति बसु के बाद इस पद को संभाला था.
खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने 2015 में सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया था और 2018 में राज्य सचिवालय की सदस्यता भी छोड़ दी थी.
सीपीआई (एम) में शामिल होने के बाद, उन्हें पार्टी की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन का राज्य सचिव बनाया गया, जिसे बाद में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया में विलय कर दिया गया.
औद्योगिकीकरण के दिया बढ़ावा:
भट्टाचार्य का औद्योगिकीकरण के लिए राज्य में तेजी से कार्य करने का प्रयास सीपीएम की 34 साल की निरंतर शासन समाप्ति का एक मुख्य कारण माना जाता है. उन्होंने टाटा मोटर्स को हुगली के सिंगूर में एक ऑटोमोबाइल फैक्ट्री स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया, जो वाम मोर्चा के अंतिम कार्यकाल के दौरान हुआ. सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों, जिन्हें ममता बनर्जी और एक विस्तृत गठबंधन ने नेतृत्व किया, जिस कारण वाम मोर्चा के शासन को समाप्त कर दिया.
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