हिमालय के दूसरे हिस्सों से अधिक तेजी से पिघल रहे हैं सिक्किम के ग्लेशियर: अध्ययन

Mar 26, 2020, 16:06 IST

इस क्षेत्र के ग्‍लेशियरों का व्‍यवहार विविधता से भरपूर है और ऐसा पाया गया है कि यह प्राथमिक तौर पर ग्‍लेशियर के आकार, मलबे के आवरण तथा ग्‍लेशियर झीलों से निर्धारित होता है.

Glaciers
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वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्‍ल्यूआईएचजी), देहरादून के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में सिक्किम के ग्लेशियर बड़े पैमाने पर पिघल रहे हैं. यह संस्थान विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हिमालय के भूविज्ञान के अध्ययन के लिए एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है.

साइंस ऑफ़ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन में 1991-2015 की अवधि के दौरान सिक्किम के 23 ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया. इससे यह पता चला कि साल 1991 से साल 2015 तक की अवधि में सिक्किम के ग्लेशियर काफी पीछे खिसक गए हैं तथा उनकी बर्फ पिघलती जा रही है.

मुख्य बिंदु

• जलवायु परिवर्तन के कारण सिक्किम के छोटे आकार के ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं और बड़े ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं.

• अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में आयामी परिवर्तन का पैमाना और मलबे की वृद्धि की मात्रा सिक्किम में अधिक है. ग्लेशियर के व्यवहार में प्रमुख बदलाव 2000 के आसपास हुआ.

• पश्चिमी और मध्य हिमालय के विपरीत, जहां हाल के दशकों में ग्लेशियरों के पिघलने की गति धीमी हुई है. वहीं सिक्किम के ग्लेशियरों में साल 2000 के बाद इसमें नाममात्र का धीमापन देखा गया है.

• ग्लेशियर में हो रहे बदलावों का प्रमुख कारण गर्मियों के तापमान में वृद्धि है.

23 प्रतिनिधि ग्लेशियरों का चयन

डब्‍ल्यूआईएचजी के वैज्ञानिकों ने सिक्किम हिमालयी ग्लेशियरों की लंबाई, क्षेत्र, मलबे के आवरण, हिम-रेखा की ऊंचाई (एसएलए) जैसे विभिन्न मापदंडों और उन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने हेतु इस क्षेत्र के 23 प्रतिनिधि ग्लेशियरों का चयन किया.

विषय से संबंधित पहले से मौजूद ज्ञान का आकलन करने के लिए अध्ययन से संबंधित विस्तृत और कठिन साहित्य सर्वेक्षण किया गया. इसके बाद, अध्ययन क्षेत्र में फैले प्रतिनिधि ग्लेशियरों का चयन आकार, लंबाई, मलबे के आवरण, ढलान, पहलू जैसे विविध मानदंडों के आधार पर किया गया.

इस क्षेत्र के ग्‍लेशियरों का व्‍यवहार विविधता से भरपूर है और ऐसा पाया गया है कि यह प्राथमिक तौर पर ग्‍लेशियर के आकार, मलबे के आवरण तथा ग्‍लेशियर झीलों से निर्धारित होता है. छोटे ग्लेशियर विहिमनदन से पीछे खिसक हे हैं, वहीं बड़े ग्‍लेशियरों में बर्फ पिघलने के कारण द्रव्यमान की हानि हो रही है.

इन अध्‍ययनों की प्रकृति क्षेत्रीय है और इसमें अलग-अलग ग्‍लेशियर के व्‍यवहार पर बल नहीं दिया गया. इसके अतिरिक्‍त इस क्षेत्र में अधिकांश आकलन केवल लम्‍बाई/क्षेत्र के बदलावों तक ही केंद्रित रहे हैं. वेग का आकलन भी अत्‍यंत दुर्लभ रहा है.

अध्‍ययन में पहली बार

इस अध्‍ययन में पहली बार ग्‍लेशियर के विविध मानकों यथा लम्‍बाई, क्षेत्र, मलबे के आवरण, हिम-रेखा की ऊंचाई (एसएलए), ग्‍लेशियर झीलों, वेग और बर्फ पिघलने का अध्‍ययन किया गया और सिक्किम में ग्‍लेशियरों की स्थिति और व्‍यवहार की स्‍पष्‍ट तस्‍वीर प्रस्‍तुत करने हेतु उनके अंतर-संबंध का पता लगाया गया.

पृष्ठभूमि

ग्‍लेशियरों के आकार साथ ही साथ उनमें हो रहे परिवर्तनों की दिशा की सटीक जानकारी, जिसे मौजूदा अध्‍ययन में उजागर किया गया है. यह अध्ययन ग्लेशियर परिवर्तनों पर पर्याप्त आधारभूत डेटा प्रदान कर सकता है और ग्लेशियर मापदंडों और विभिन्न प्रभावकारी कारकों के बीच आकस्मिक संबंधों का व्यवस्थित रूप से पता लगा सकता है. इससे ग्लेशियर की स्थिति की स्पष्ट समझ भविष्य के अध्ययन को अनुकूल बनाने के साथ-साथ आवश्यक उपाय करने में सहायता करेगी.

Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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