विश्व भर में आत्महत्या के कारण होने वाली मौत के मामलों में 1990 के बाद से करीब एक तिहाई कमी दर्ज की गई. यह दावा 07 फरवरी 2019 को प्रकाशित एक अध्ययन में किया गया है.
हालांकि, ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की टीम द्वारा तैयार किए गये डेटा मॉडल के अनुसार अलग अलग देशों में आत्महत्या करने के अलग अलग कारण पाए गए हैं. इस अध्ययन से स्पष्ट है कि दुनिया भर में आत्महत्या के मामले कम हुए हैं.
अध्ययन से संबंधित मुख्य तथ्य:
• ‘द बीएमजे’ पत्रिका द्वारा प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि वर्ष 2016 में आत्महत्या करने वालों में से करीब 44.2 प्रतिशत लोग भारत एवं चीन से थे.
• हालांकि, पिछले तीन दशकों में दुनिया की आबादी काफी बढ़ी है. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की टीम ने पाया कि उम्र और जनसंख्या के आकार के आधार पर देखें तो आत्महत्या की दर प्रति 100,000 लोगों पर 16.6 से घट कर 11.2 हो गई हो जो 32.7 प्रतिशत कम है.
वर्ष 1990 से वर्ष 2016 के बीच आत्महत्या:
इसमें पाया गया कि वर्ष 1990 से वर्ष 2016 के बीच आत्महत्या के चलते होने वाली मौतों में 6.7 फीसदी बढो़तरी देखी गई थी. हालांकि जब आयु को आधार बनाकर इस दर को देखा गया तो शोधकर्ताओं ने पाया कि इसी अवधि में आत्महत्या से होने वाली वैश्विक मृत्यु दर दुनिया भर में करीब 33 फीसदी तक गिरी थी.
पुरुषों की संख्या ज्यादा:
अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने देखा कि आत्महत्या से होने वाली मौतों की दर महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा थी. साथ ही उन्होंने पाया कि ऊंची दरें सामाजिक एवं आर्थिक नुकसान से जुड़ी हुई प्रतीत हुईं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) आत्महत्या को एक गंभीर लोक स्वास्थ्य मुद्दे के तौर पर सूचीबद्ध किया है और एक अनुमान के मुताबिक, हर साल कम से कम 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं.
आत्महत्या जन स्वास्थ्य का एक वैश्विक मुद्दा है. डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य वर्ष 2015 से वर्ष 2030 के बीच आत्महत्या से होने वाली मौतों को एक तिहाई तक कम करना है.
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