प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दूसरी बार सरकार बनाने के पहले दिन नई शिक्षा नीति का मसौदा पेश किया गया है. मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को प्रस्तुत की गई इस रिपोर्ट में कई नए प्रस्ताव रखे गये हैं. नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए मशहूर अंतरिक्ष विज्ञानी के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में समिति गठित की गई थी.
नई शिक्षा नीति का मसौदा: प्रमुख सिफारिशें
• इसके तहत शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है, साथ ही स्नातक पाठ्यक्रमों को भी संशोधित किया गया है.
• इस मसौदा नीति में लिबरल आर्ट्स साइंस एजुकेशन के चार वर्षीय कार्यक्रम को फिर से शुरू करने तथा कई कार्यक्रमों के हटाने के विकल्प के साथ-साथ एम. फिल. प्रोग्राम को रद्द करने का भी प्रस्ताव किया गया है.
• इस मसौदा नीति के अनुसार, पी.एच.डी. करने के लिये या तो मास्टर डिग्री या चार साल की स्नातक डिग्री को अनिवार्य किया गया है.
• नए पाठ्यक्रम में 3 से 18 वर्ष तक के बच्चों को कवर करने के लिये 5+3+3+4 डिज़ाइन (आयु वर्ग 3-8 वर्ष, 8-11 वर्ष, 11-14 वर्ष और 14-18 वर्ष) तैयार किया गया है जिसमें प्रारंभिक शिक्षा से लेकर स्कूली पाठ्यक्रम तक शिक्षण शास्त्र के पुनर्गठन के भाग के रूप में समावेशन के लिये नीति तैयार की गई है.
• यह मसौदा नीति धारा 12 (1) (सी) (निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के छात्रों के लिये अनिवार्य 25 प्रतिशत आरक्षण का दुरुपयोग किया जाना) की भी समीक्षा करती है.
अन्य प्रमुख सिफारिशें
• स्कूली शिक्षा के लिये एक स्वतंत्र नियामक ‘राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण’ (SSRA) और उच्च शिक्षा के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण स्थापित किया जाएगा.
• निजी स्कूल अपनी फीस निर्धारित करने के लिये स्वतंत्र हैं, लेकिन वे मनमाने तरीके से स्कूल की फीस में वृद्धि नहीं करेंगे. ‘राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण’ द्वारा प्रत्येक तीन साल की अवधि के लिये इसका निर्धारण किया जाएगा.
• प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक नए शीर्ष निकाय ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ की स्थापना की जाएगी जो सतत् आधार पर शिक्षा के विकास, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और शिक्षा के उपयुक्त दृष्टिकोण को लागू करने के लिये उत्तरदायी होगा.
• स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होने के लिये गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा के लिये प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों के योगदान को सुनिश्चित किया जाएगा.
• विदेशों में भारतीय संस्थानों की संख्या में वृद्धि करने के साथ-साथ दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी शाखाएँ स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी.
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