आसियान को कुछ वर्ष पहले व्यापक रूप से एक फलते-फूलते क्षेत्रीय संगठन के रूप में देखा जाता था लेकिन, इन दिनों यह अपनी आंतरिक सुसंगति को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है.
आसियान में प्रधानमंत्री मोदी का बयान
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के बैनर तले आयोजित पिछले सप्ताह एशियाई नेताओं के साथ अपनी मुलाकात में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सही बातें कही हैं. उन्होंने एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की और आसियान की केंद्रीयता के लिए दिल्ली के समर्थन को रेखांकित किया.
लेकिन इन दिनों एशिया तेजी से बदल रहा है और भारत ने 1990 के दशक की शुरुआत में लुक ईस्ट पॉलिसी के नाम पर जिस नीति को शुरू किया था, आज एशिया उससे बहुत अलग है. वर्ष, 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से इस क्षेत्र में अधिकांश मंथन हुआ है. इसके बाद प्रधानमंत्री ने अपनी "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" के साथ क्षेत्रीय सहभागिता को नई ऊर्जा प्रदान करने का वादा किया. अब तक दिल्ली के लिए यह आसान था लेकिन, अब इसे क्षेत्रीय सहयोग के आसियान एजेंडे को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है. लेकिन इस क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन और पुरानी मान्यताओं के टूटने से भारत अपने आसियान सहभागिता को फिर से शुरू करने की मांग है.
आसियान की वर्तमान स्थिति
बेशक! आसियान को कुछ वर्ष पहले व्यापक रूप से एक फलते-फूलते क्षेत्रीय संगठन के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब यह आज अपनी आंतरिक सुसंगति को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट से निपटने के तरीके पर गंभीर मतभेद रहे हैं. चीन के उदय और अपने पड़ोसियों के प्रति उसकी मुखर नीतियों ने आसियान को बहुत परेशान और प्रभावित किया है. लेकिन चीन की निकटता और शक्ति से अभिभूत होने के कारण, केवल कुछ ही सदस्य देश बीजिंग के खिलाफ अपनी बुलंद आवाज उठाने को तैयार हैं.
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निरंतर तेज होती चीन-अमेरिका होड़ के दबाव में, आसियान के सदस्य देश हिंद-प्रशांत की भू-राजनीतिक अवधारणा को लेकर दुविधा में हैं. उनमें से कई सदस्य देशों ने बीजिंग के उस कथन का समर्थन किया है जो इंडो-पैसिफिक कार्रवाई को चीन विरोधी बताता है.
भारत के प्रति आसियान देशों का रुख
आसियान के सदस्य देश क्वाड समूह में भारत की सदस्यता के बारे में भी सावधान हैं जिसे आसियान केंद्रीयता के लिए संभावित चुनौती के रूप में देखा जाता है. दिल्ली ने भारत-प्रशांत के अपने दृष्टिकोण को समझाने, दिल्ली की क्वाड समूह की सदस्यता पर क्षेत्र को आश्वस्त करने और आसियान राज्यों के साथ स्वयं के द्विपक्षीय सहयोग को तेज करने के लिए अपने क्रियाकलाप तेज़ कर दिये हैं. क्षेत्र-व्यापी मुक्त व्यापार समझौते से दिल्ली की वापसी, वर्ष 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, आसियान सदस्यों के बीच चिंता और विवाद का कारण बनी हुई है. RCEP से जुड़ी व्यापक क्षेत्रीय धारणा है कि भारत अपनी "आत्मनिर्भर" नीतियों के साथ फिर से अंतर्मुखी हो गया है.
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