भारत और वियतनाम व्यापार मंच (बिजनेस फोरम) की एक आभासी बैठक 20 अक्टूबर, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित की गई थी. इस बैठक के दौरान, दोनों देशों के बीच बढ़ते द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों की पुष्टि की गई.
इस अवसर पर बोलते हुए, विदेश मंत्रालय की सचिव (पूर्व) रीवा गांगुली दास ने कहा कि, भारत और वियतनाम के बीच वर्तमान में व्यापार लगातार बढ़ रहा है और यह वर्ष 2019-20 में 12.34 बिलियन डॉलर का हो गया है.
भारत और वियतनाम के बीच बिजनेस फोरम की इस आभासी बैठक का आयोजन वियतनाम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स ने एक-साथ मिलकर किया था.
भारत-वियतनाम द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंध: मुख्य विशेषताएं
सचिव (पूर्व), विदेश मंत्रालय ने अपने मुख्य भाषण के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि, मौजूदा कोविड -19 महामारी के बावजूद, इन दोनों देशों ने उच्च-स्तरीय संबंध बनाए रखे हैं.
भारत और वियतनाम के बीच वर्ष 2000 में 200 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार का मामूली आंकड़ा अब वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 12.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है.
भारत से वियतनाम तक निर्यात टोकरी में मत्स्य उत्पाद, गो-जातीय मांस, कपास, फार्मास्यूटिकल्स और स्टील शामिल हैं. जबकि वियतनाम से भारत में आयात के तौर पर मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उपकरण, प्राकृतिक रबर, रसायन, कॉफी जैसे पदार्थ शामिल हैं.
वियतनाम की विदेशी निवेश एजेंसी के अनुसार, भारत ने वियतनाम में 278 अमेरिकी डॉलर की पूंजी के साथ लगभग 278 परियोजनाओं में अपना निवेश किया है.
हालांकि, इन दोनों राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अभी भी आर्थिक विकास के स्तर के बराबर नहीं है, जो दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को व्यापक बनाने के लिए और अधिक काम करने की आवश्यकता पर बल देता है.
भारत और वियतनाम के आपसी संबंध
इन दोनों देशों के आपसी संबंध हमेशा जोशीले और मैत्रीपूर्ण रहे हैं जो कई क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सद्भावना, आपसी विश्वास और रणनीतिक सम्मिलन पर आधारित हैं.
भारत और वियतनाम के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी और सहयोग की एक विस्तृत श्रृंखला है जिसमें रक्षा और सुरक्षा सहयोग, राजनीतिक वचनबद्धता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक साझेदारी, दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संपर्क और ऊर्जा सहयोग शामिल हैं.
भारत की 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' का वियतनाम एक प्रमुख स्तंभ है और यह भारत की 'हिंद-प्रशांत महासागर पहल' में एक आवश्यक भागीदार भी है. यह क्षेत्र की स्थिरता, शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने में देश के साझा मूल्य और रुचि पर भी आधारित है.
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