भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (National Supercomputing Mission) के लिए फ्रांस की कंपनी एटॉस के साथ 4500 करोड़ रुपये के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. इस समझौते का उद्देश्य 70 से अधिक सुपरकंप्यूटर तैयार करना है.
यह माना जा रहा है कि इस समझौते से भारत में 73 सुपर कंप्यूटर डिज़ाइन और निर्मित किये जाने की संभावना है जिसकी बदौलत भारत की सुपरकंप्यूटिंग क्षमता को बढ़ावा मिलेगा. गौरतलब है कि इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु देश में उच्च क्षमता वाली 70 से भी अधिक सुपरकंप्यूटिंग सुविधाओं से युक्त शोध संस्थानों का नेटवर्क बनाया जाएगा.
राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन |
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 25 मार्च 2015 को राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंज़ूरी दी थी. संचार और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास, वैश्विक प्रौद्योगिकी के रुझानों और बढ़ती हुई आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंज़ूरी दी थी. यह नए सुपरकंप्यूटर न केवल सरकार की ई-प्रशासन नीति को बेहतर बनाएंगे बल्कि यह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को भी आम जनता तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. ये सुपर कंप्यूटर विभिन्न मंत्रालयों, वैज्ञानिकों व शोध करने वाले संस्थानों के काम आएंगे. इनसे दवाओं के निर्माण, ऊर्जा के स्रोत तलाशने व जलवायु परिवर्तन आदि क्षेत्रों में भी लाभ हासिल किया जाएगा. |
भारत में सुपर-कंप्यूटर्स की स्थिति
भारत के पास लगभग 30 सुपर कंप्यूटर हैं जिनमें से अधिकांश उच्च अधिगम वाले संस्थानों, जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान, आईआईटी और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं जैसे भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, सी-डैक सीएआईआर-चतुर्थ प्रतिमान संस्थान और राष्ट्रीय मध्यम रेंज मौसम पूर्वानुमान केंद्र आदि में स्थित हैं. सुपरकंप्यूटिंग मिशन के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद भारत की गिनती अमेरिका, जापान, चीन और यूरोपीय संघ जैसे सुपरकंप्यूटर से संपन्न देशों में होगी.
सुपरकंप्यूटर का उपयोग कहां होगा?
पहले तीन सुपर कंप्यूटर आईआईटी बीएचयू, आईआईटी खड़गपुर और आईआईआईटीएम पुणे में स्थापित किये जाएंगे. आईआईटी बीएचयू को एक पेटा फ्लॉप सुपर कंप्यूटर मिलेगा, जबकि अन्य दो संस्थानों को 650 टेरा फ्लॉप सुपर कंप्यूटर मिलेंगे. सी-डैक (C-DAC) सभी सुपर कंप्यूटर्स को एक सामान्य ग्रिड से जोड़ने की योजना बना रहा है, जो किसी भी संस्थान को सुपरकंप्यूटिंग पावर तक पहुँचने की सुविधा प्रदान करेगा जिससे यह दुनिया की सबसे तेज़ सुपरकंप्यूटिंग प्रणाली बन जाएगी.
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