केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के तीन दिवसीय मॉस्को दौरे के दौरान भारत और रूस ने अत्याधुनिक एके-203 राइफल भारत में बनाने हेतु एक बड़े समझौते को अंतिम रूप दे दिया है. भारत और रूस के बीच एके-203 राइफल्स को लेकर डील पक्की हो गई है. अब इस राइफल को भारत में भी बड़े पैमाने पर तैयार किया जा सकेगा.
एके-203 राइफल, एके-47 राइफल का नवीनतम और सर्वाधिक उन्नत प्रारूप है. यह अब इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम (इंसास) असॉल्ट राइफल की जगह लेगा. इस सौदे पर एससीओ (शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गनाइजेशन) समिट के दौरान सहमति बनी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस समिट में हिस्सा लेने के रूस में ही मौजूद हैं.
Both sides welcomed the advance stage of discussions for the establishment in India of an India-Russian Joint Venture for the production of AK203 assault rifles which are considered one of the most modern weapons available for infantry forces.
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) September 3, 2020
मुख्य बिंदु
• एके-203 राइफल, एके-47 राइफल का नवीनतम और सर्वाधिक उन्नत प्रारूप है. यह 'इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम' (इनसास) 5.56 गुणा 45 मिमी राइफल की जगह लेगा.
• रूस की सरकारी समाचार एजेंसी स्पुतनिक के अनुसार भारतीय थल सेना को लगभग 7,70,000 एके-203 राइफलों की जरूरत है. इनमें से एक लाख का आयात किया जाएगा और शेष का विनिíमण भारत में किया जाएगा.
• इन रायफलों को भारत में संयुक्त उद्यम भारत-रूस राइफल प्राइवेट लिमिटेड (आइआरआरपीएल) के तहत बनाया जाएगा. इसकी स्थापना आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) और कलाशनीकोव कंसर्न तथा रोसोबोरेनेक्सपोर्ट के बीच हुई है.
• ओएफबी की आइआरआरल में 50.5 प्रतिशत अंशधारिता होगी, जबकि कलाशनीकोव की 42 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. रूस की सरकारी निर्यात एजेंसी रोसोबोरेनेक्सपोर्ट की शेष 7.5 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी.
• एके-203 राइफल को ऑटोमेटिक और सेमी ऑटोमेटिक दोनों ही मोड पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी मारक क्षमता 400 मीटर है. सुरक्षाबलों को दी जाने वाली इस राइफल को पूरी तरह से लोड किए जाने के बाद कुल वजन 4 किलोग्राम के आसपास होगा.
कोरवा आयुध फैक्टरी में उत्पादन
उत्तर प्रदेश में कोरवा आयुध फैक्टरी में 7.62 गुणा 39 मिमी के इस रूसी हथियार का उत्पादन किया जाएगा. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में किया था. प्रति राइफल करीब 1,100 डॉलर की लागत आने की उम्मीद है. इसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण लागत और विनिर्माण इकाई की स्थापना भी शामिल है.
इनसास राइफल का इस्तेमाल
इनसास राइफलों का इस्तेमाल साल 1996 से किया जा रहा है. इसमें हिमालय की ऊंचाई पर जैमिंग और मैगजीन के क्रैक जैसी समस्याएं पैदा होने लगी हैं. लेकिन अब खास बात यह है कि पुराने मॉडल से उलट यह राइफल हिमालय जैसे ऊंचे इलाकों के लिए बेहतर होती है. आपको बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में हिस्सा लेने के लिए 02 सितम्बर 2020 को रूस की राजधानी मास्को पहुंचे हैं.
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