भारत ने अगले तीन से चार वर्षों में अंटार्कटिका में अपने मैत्री अनुसंधान केंद्र को बदलने का फैसला किया है. धरती विज्ञान मंत्रालय के सचिव माधवन नायर राजीव ने 9 मई, 2017 को यह घोषणा की.
धरती विज्ञान मंत्रालय के सचिव माधवन नायर राजीव ने कोलकाता, भारत में टीटागढ़ वैगंस लिमिटेड द्वारा औपचारिक रूप से शिपबिल्डिंग कार्यक्रम के शुभारम्भ के अवसर पर यह घोषणा की. उन्होंने यह भी कहा कि भारत सबसे ठंडा महाद्वीप में अपनी शोध गतिविधियों का विस्तार करने के लिए तैयार है और इस उद्देश्य के लिए एक नया जहाज़, विशेष बर्फ-काटने की सुविधा वाला खरीदा जाएगा.
धरती विज्ञान मंत्रालय के सचिव माधवन नायर राजीव के अनुसार भारत अंटार्कटिका में अपने हितों की रक्षा हेतु अपने स्वयं के कानूनों का प्रारूप तैयार कर रहा है, क्योंकि वर्तमान में यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों द्वारा संचालित है.
पृष्ठभूमि-
• भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम भारत सरकार के नियंत्रण वाला अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान केंद्र पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक बहु-अनुशासनिक, बहु-संस्थागत कार्यक्रम है.
• इसे 1981 में अंटार्कटिका के लिए पहली भारतीय अभियान के साथ आरम्भ किया गया.
• इस कार्यक्रम ने भारत को अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर करने और 1983 में दक्षिण गंगोत्री अंटार्कटिक अनुसंधान आधार के निर्माण के साथ वैश्विक स्वीकृति प्राप्त की.
• 1990 में गंगोत्री आधार को मैत्री बेस द्वारा स्थानांतरित किया गया.
• वर्ष 2015 में आरम्भ किया भारती एक नया आधार है, जिसमें 134 शिपिंग कंटेनरों का निर्माण किया गया.
भारत ने 14 अक्टूबर 2010 को अंटार्कटिक में 30 से अधिक वैज्ञानिक अभियानों का संचालन किया.
मैत्री अनुसंधान केन्द्र-
• मैत्री अनुसंधान केन्द्र (Maitri Research Station) अंटार्कटिका में भारत का दूसरा स्थाई अनुसंधान केन्द्र है.
• इसका निर्माण 1989 में किया गया. इसके बाद भारत के पहले अनुसंधान केन्द्र, दक्षिण गंगोत्री, को छोड़ दिया गया और वह ब़र्फ के नीचे दब गया.
• मैत्री पूर्वी अंटार्कटिका के रानी मौड धरती क्षेत्र में शिरमाकर ओएसिस (Schirmacher Oasis) नामक एक पथरीलें पठारी इलाक़े में स्थित है.
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