भारतीय रेलवे द्वारा 07 नवम्बर 2017 से स्वर्ण परियोजना के तहत नई दिल्ली से काठगोदाम तक पहली ट्रेन चलाई गयी. यह शतब्दी एक्सप्रेस ट्रेन है जिसे स्वर्ण परियोजना के तहत चलाया गया. इस परियोजना के तहत शताब्दी और राजधानी ट्रेनों का नवीनीकरण किया जा रहा है.
रेल मंत्रालय द्वारा जारी जानकारी के अनुसार स्वर्ण परियोजना का उद्देश्य यात्रा को आरामदायक एवं सुविधाजनक बनाना है. यात्रियों की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए ट्रेनों में आवश्यक बदलाव किये गये हैं साथ ही ट्रेन में दिए जाने वाले भोजन की व्यवस्था पर भी काम किया जा रहा है.
स्वर्ण परियोजना के अंतर्गत दिल्ली से काठगोदाम तक चलने वाली पहली ट्रेन की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
निःशुल्क वाई-फाई - इसके तहत यात्रियों को पुराने किराए पर ही नई सुविधाएं दी जायेंगी. इसमें निःशुल्क वाई-फाई सबसे पहला कदम है. यात्री अपने मोबाइल एवं लैपटॉप पर निःशुल्क इन्टरनेट चला सकेंगे.
टॉयलेट कंट्रोल लॉक – जब तक ट्रेन स्टेशन पर रहेगी टॉयलट बंद रहेंगे. ट्रेन के ओरिजिनेटिंग स्टेशन पर भी टॉयलट लॉक रहेंगे. इससे टॉयलट में होने वाली चोरी की घटनाएं कम होंगी. टॉयलट से पानी बाहर न आए, इसके लिए स्क्रेपर मैटिंग लगाई गई है.
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डिस्पोजेबल हैड रेस्ट - ट्रेन के एग्जीक्यूटिव श्रेणी में डिस्पोजेबल हैड रेस्ट कवर दिए गए हैं. इसे एक बार में इस्तेमाल करके फेंका जा सकेगा. इसका फायदा यह होगा कि इससे साफ़-सफाई पर किसी प्रकार का समझौता नहीं करना पड़ेगा.
हॉट केस में भोजन - काठगोदाम शताब्दी में गर्मागर्म खाने के लिए हॉट केस की सुविधा भी दी गई है. खाने को सीट तक पहुंचाने के लिए स्लिम ट्रॉली का इस्तेमाल किया जाएगा.
दिव्यांगों के लिए विशेष - ट्रेन को दिव्यांगों के लिए फ्रेंडली बनाया है. ट्रेन में लगे साइन बोर्ड, सीट नंबर आदि में ब्रेल लिपि का इस्तेमाल किया गया है. इससे दिव्यांगों को दूसरे पैसेंजर्स से मदद लेने की जरूरत नहीं रहेगी.
सफाईकर्मी – ट्रेन में साफ़-सफाई बनी रहे इसके लिए 12 कोच की काठगोदाम शताब्दी में सफाई के लिए हर तीन कोच में एक कर्मचारी तैनात होगा. यात्रियों को शिकायत होने पर वह तय नंबर पर संपर्क करके सफाई करा सकेंगे.
उत्तर रेलवे इस समय 13 शताब्दी और 11 राजधानी ट्रेनों का संचालन कर रहा है. इस वित्त वर्ष के अंत तक उत्तर रेलवे 3 राजधानी और 4 शताब्दी ट्रेनों को इन्हीं सुविधाओं से लैस कर देगा. एक कोच को हाईटेक बनाने में रेलवे को दो से ढाई लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ट्रेन के सभी कोच में जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली और सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना पर भी कार्य किया जा रहा है.
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