भारत ने किया भारत-चीन सीमा के पास, सबसे ऊंचे क्षेत्र में हर्बल पार्क का उद्घाटन

Aug 23, 2021, 17:06 IST

माणा गांव में 11,000 फीट की ऊंचाई पर इस हर्बल पार्क का उद्घाटन किया गया है. यह चीन की सीमा से लगे उत्तराखंड के चमोली जिले का अंतिम भारतीय गांव है.

India’s highest herbal park inaugurated near Indo-China border- All you need to know
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भारत के सबसे ऊंचाई वाले इस हर्बल पार्क का उद्घाटन 21 अगस्त, 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत-चीन सीमा के करीब माणा गांव में किया गया था. यह हर्बल पार्क 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

उत्तराखंड का माणा गांव चीन की सीमा से लगे चमोली में अंतिम भारतीय गांव है और बद्रीनाथ के प्रसिद्ध हिमालयी मंदिर से सटा हुआ है.

उत्तराखंड के वन विभाग के अनुसंधान विंग ने केंद्र सरकार के CAMPA (कम्पेंसेटरी एफोरेस्टेशन फंड एक्ट, स्कीम अर्थात प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम, योजना) के तहत माणा वन पंचायत द्वारा दी गई तीन एकड़ भूमि पर यह हर्बल पार्क तैयार किया है.

भारत का सबसे ऊंचा हर्बल पार्क: मुख्य विवरण

• भारत-चीन सीमा के पास बनाये गये इस हर्बल पार्क में लगभग 40 प्रजातियां हैं जो, हिमालयी क्षेत्र में उच्च ऊंचाई वाले अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाती हैं.
• प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) और राज्य जैव विविधता बोर्ड के अनुसार, इस हर्बल पार्क में लगाई गई कई प्रजातियां लुप्तप्राय और खतरे में हैं. इसमें कई महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटियां भी शामिल हैं.

यह हर्बल पार्क क्या है?

भारत में हर्बल पार्क जड़ी-बूटियों को क्षरण और समाप्ति से बचाने और संरक्षित करने के सरकार के प्रयासों का एक हिस्सा हैं. इन हर्बल पार्कों का उद्देश्य देश की पारंपरिक दवा प्रणाली को जीवित रखना है.

हर्बल पार्क के हैं चार हिस्से

  1. इस पार्क के पहले हिस्से में बद्रीनाथ (भगवान विष्णु) से जुड़ी प्रजातियां हैं, जिनमें बद्री बेर, बद्री तुलसी, बद्री वृक्ष और भोजपत्र जैसा पवित्र वृक्ष शामिल है.

बद्री तुलसी, जिसे वैज्ञानिक रूप से ओरिगनम वल्गारे नाम दिया गया है, इस क्षेत्र में पाया जाता है और भगवान बद्रीनाथ को चढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. विभिन्न शोधकर्ताओं ने इसके कई औषधीय लाभों का भी उल्लेख किया है.

बद्री बेर, वैज्ञानिक रूप से हिप्पोफे सैलिसिफोलिया के रूप में जाना जाता है और स्थानीय रूप से अमेश के रूप में जाना जाता है. यह एक और पोषण से भरपूर भोजन है और इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.

  1. दूसरा हिस्सा अष्टवर्ग प्रजाति को समर्पित है. यह आठ जड़ी-बूटियों का एक समूह है जो हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं, जैसे रिद्धि (हैबेनेरिया इंटरमीडिया), जीवक (मलैक्सिस एक्यूमिनाटा), वृद्धि (हैबेनेरिया एडगेवोथी), ऋषभक (मैलैक्सिस मस्कीफेरा), काकोली (फ्रिटिलारिया रॉयली), क्षीर काकोली (लिलियम पॉलीफाइलम), मैदा (प्लोयगोनैटम सिरिफोलियम), और महा मैदा (प्लोयगोनैटम वर्टिसिलैटम).

इनमें से चार जड़ी-बूटियां लिली परिवार की हैं और अन्य चार आर्किड परिवार की हैं.

  1. तीसरे हिस्से में सौसुरिया प्रजातियां शामिल हैं. इसमें ब्रह्मकमल (सौसुरिया ओबवल्लता) भी शामिल है जो उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी है.

इस पार्क में अन्य सौसुरिया प्रजातियां हैं फेकमल (सौसुरिया सिम्पसोनियाना), नीलकमल (सौसुरिया ग्रैमिनिफोलिया) और कूट (सौसुरिया कॉस्टस).

  1. इस पार्क के चौथे हिस्से में मिश्रित अल्पाइन प्रजातियां शामिल हैं जिनमें मीठाविश, अतीश, चोरू और वंकाकडी शामिल हैं. ये सभी महत्त्वपूर्ण औषधीय जड़ी बूटियां हैं और इनकी काफी मांग भी हमेशा रहती है.
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