भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष के. सिवन ने यह जानकारी दी है कि, भारतीय अंतरिक्ष रॉकेट हरित होने के लिए तैयार हैं क्योंकि अंतरिक्ष एजेंसी अपने उपग्रहों और रॉकेटों के लिए पर्यावरण अनुकूलित और गैर-खतरनाक ईंधन के साथ अपने मौजूदा खतरनाक ईंधन को बदलने के लिए काम कर रही है.
ISRO प्रमुख ने यह भी बताया कि, अंतरिक्ष एजेंसी अपने रॉकेट में हाइड्रोजन पेरोक्साइड के माध्यम से हरित संचालन के लिए कार्य कर रही है जो भारतीयों को अपने महत्वाकांक्षी 'गगनयान' मिशन के तहत अंतरिक्ष में ले जाएगा. उन्होंने आगे यह कहा कि, चूंकि मानव रॉकेट के अंदर बैठा होगा, इसलिए मानव अंतरिक्ष मिशन के रॉकेट के संचालन के लिए केवल गैर-खतरनाक ईंधन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
ISRO की हरित ईंधन विकसित करने की योजना
अंतरिक्ष एजेंसी उन रॉकेट इंजनों को भी परख रही है जो हाइड्रोजन पेरोक्साइड द्वारा बाइ-प्रोपलेंट के रूप में या इथेनॉल के साथ मोनो-प्रोपलेंट के रूप में संचालित होते हैं. यह एक अन्य हरित ईंधन भी विकसित कर रहा है - LOX/ मीथेन- जहां तरल ऑक्सीजन ऑक्सीडाइज़र और मीथेन ईंधन के रूप में काम करेगा.
इस चालकता/ प्रोपलेंट के भंडारण, विशिष्ट आवेग, लागत और कम विषाक्तता के संदर्भ में भी फायदे हैं.
ISRO अपने तरल इंजन ईंधन को ग्रीन-फ्यूल से बदलेगा
ISRO प्रमुख के अनुसार, अंतरिक्ष एजेंसी अपने मौजूदा तरल इंजन ईंधन को भी पर्यावरण अनुकूलित ईंधन से संचालित करने की दिशा में प्रयास कर रही है. ISROSENE को अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा विकसित किया गया है जो केरोसीन का एक रॉकेट-ग्रेड संस्करण/ वर्जन है. यह पारंपरिक हाइड्राजीन रॉकेट ईंधन का एक विकल्प होगा.
उपग्रहों/ सेटेलाइट्स को शक्ति प्रदान करने की बात करते हुए, ISRO प्रमुख ने यह भी बताया कि, अंतरिक्ष एजेंसी रासायनिक ईंधन के स्थान पर हल्के विद्युत प्रोपलेंट की दिशा में काम कर रही है.
वर्तमान में, ISRO अपने रॉकेट के साथ चार टन तक वजन वाले संचार उपग्रहों को ऑर्बिट में भेज सकता है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी एरियनस्पेस के एरियन रॉकेट का उपयोग करके चार टन से अधिक के उपग्रहों को कक्षा/ ऑर्बिट में भेजा जा रहा है.
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