जापान ने एक जून 2017 को एक उच्च स्तरीय सटीक जियोलोकेशन प्रणाली को विकसित करने में मदद हेतु एक उपग्रह लांच किया है, जो अमेरिका-संचालित जीपीएस का पूरक होगा.
जापान के एरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के फुटेज के अनुसार दक्षिणी जापान स्थित तानेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र से आज सुबह के 9.17 बजे एच-11ए रॉकेट को प्रक्षेपित कर ‘‘मिचिबिकी’’ संख्या-2 नामक उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया.
उपग्रह जियोलोकेशन के बारे में -
- उपग्रह जियोलोकेशन प्रणाली को शुरुआत में अमेरिकी सेना के लिए तैयार किया गया था.
- अब इसका उपयोग व्यापक तौर पर किया जा रहा है.
- अनगिनत लोगों को इस प्रणाली का लाभ मिल रहा है.
- कार नेविगेशन से लेकर मोबाइल फोन पर इंटरनेट ब्राउजिंग तक में इसका प्रयोग किया जाता है.
- यह उपग्रह एशिया-ओशिनिया क्षेत्र को कवर कर सकता है और यह अमेरिका संचालित ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के साथ का काम करता है.
उपग्रह जियोलोकेशन का उद्देश्य-
- अपने देश और आसपास के व्यापक क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए जापान का उद्देश्य इस संस्करण के चार उपग्रहों को तैयार करना है.
- इसके तहत व्यापक सेवा की शुरुआत के उद्देश्य से जापान ने 2010 में इस श्रृंखला के पहले उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया और मार्च 2018 तक तीसरे और चौथे उपग्रह को भी लांच किया जाना है.
- जापान का मकसद 2023 तक सात उपग्रहों के समूह को कक्षा में स्थापित करना है.
जीपीएस प्रणाली -
- वर्ष 2018 की शुरुआत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), देश की अपनी वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली (जीपीएस), भारतीय क्षेत्रीय नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) के संचालन को शुरू कर देगा. यह भारत को उन देशों के बड़े विशिष्ट समूह में भी खड़ा कर देगा.
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अहमदाबाद के अंतरिक्ष अनुप्रयोग प्रयोगशाला ने डिस्ट्रेस अलार्म ट्रांसमीटर (डीएटी) नाम का एक छोटा यंत्र विकसित किया.
- यह यंत्र ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम पर आधारित चेतावनी प्रणाली है और बैटरी-चालित इस यंत्र का यूनिक आईडी नंबर होता है. जो चौबीस घंटे हर पांच मिनट के अंतराल पर चेतावनी भेजता रहता है.
- इसके द्वारा बचाव दल कंप्यूटर स्क्रीन पर समुद्र में नाव की स्थिति को जान सकते हैं.
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