विवाह पंजीकरण को जरूरी बनाने का पक्ष लेते हुए विधि आयोग ने 4 जून 2017 को कहा कि इससे 'वैवाहिक धोखाधड़ी' रोकने में मदद मिलेगी और शादी का कोई रिकॉर्ड न होने की वजह से महिलाओं को पत्नी का दर्जा नहीं मिलने से भी संरक्षण मिल सकेगा.
अपनी 270 वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि तमाम कानून के बावजूद बहु-विवाह, बाल-विवाह जैसी समाजिक बुराइयां मौजूद है ऐसे में शादी के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को लेकर विचार किया जाए. विधि आयोग की ओर से पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि तमाम प्रयास किया गया बावजूद इसके चाइल्ड मैरेज, बहु-विवाह और जेंडर हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयां जारी है.
विधि आयोग ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी के 30 दिन के अंदर मैरिज रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य किया जाना चाहिए. रिपोर्ट में शादी के 30 दिन के भीतर रजिस्ट्रेशन न करवाने पर जुर्माने की भी सिफारिश की गई है.
विधि आयोग की ओर से ‘कम्पलसरी रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरिजेज’ टाइटल नाम से अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को वर्ष 2006 में शादी के पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) को अनिवार्य करने का आदेश दिया था. इसके बाद केरल, हिमाचल और बिहार सरकार ने इसे लागू कर दिया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी समुदायों के लिए अलग कानून बनाने की बजाय 1969 के जन्म और मृत्यु पंजीकरण कानून में ही शादी के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान जोड़ दिया जाए. रिपोर्ट्स के अनुसार विधि आयोग ने कहा कि बाल विवाह, द्विविवाह और बहुविवाह को रोकने के लिए बने कानून को क्रियान्वयन में सहायक होगी. इससे जबरदस्ती की गई विवाह को रोका जा सकता है. इससे महिला सशक्तिकरण में भी मदद मिलेगी.
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