आर्कटिक के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आईस कैप के तेजी से पिघलने के कारण इलाके में 19' टिप्पिंग प्वाइंट्स' के ट्रिगर होने का खतरा पैदा हो गया है. आर्कटिक रीसाइलेंस रिपोर्ट के अनुसार, आर्कटिक के गर्म होने से पूरे विश्व में अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन हो सकता है. इससे सूदूर स्थान जैसे हिन्द महासागर तक प्रभावित हो सकता है और नतीजे विनाशकारी हो सकते हैं.
फिलहाल आर्कटिक क्षेत्र के आस–पास का तापमान 20 डिग्री है, जो उम्मीद के अनुसार काफी अधिक है. समुद्री बर्फ की सीमा भी बीते वर्षों के मुकाबले इस वर्ष अपने न्यूनतम स्तर पर है.
ऐसे टिप्पिंग प्वाइंट्स तब आते हैं जब अचानक हुए बदलाव प्राकृतिक प्रणाली को ढंक लें और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव डालें. प्रभाव अक्सर अपरिवर्तनीय होते हैं.
इस मामले में मुख्य टिप्पिंग प्वाइंट में शामिल है आर्कटिक टुंड्रा पर वनस्पति का विकास जो सघन वनस्पति से हिम और हिपात की जगह ले लेते हैं, बदले में वे अधिक ताप अवशोषित करते हैं और नतीजतन प्रबल ग्रीनहाउस गैस, मीथेन अधिक मात्रा में निकलने लगती है.
यह प्रक्रिया बर्फ के वितरण में बदलाव का कारण बन जाएगा जो महासागर को गर्म कर देगा. परिणाम होगा वैश्विक जलवायु परिवर्तन जिससे एशिया जैसे दूर स्थित महाद्वीप का मानसून भी प्रभावित होगा. इससे पूरी दुनिया के महासागरीय जीवन पर प्रभाव पड़ेगा और आर्कटिक मछलीपालन श्रृंखला टूट जाएगी. सबसे बुरा प्रभाव आर्कटिक क्षेत्र में और उसके आस–पास रहने वाले लोगों पर पड़ेगा.
आर्कटिक काउंसिल और छह विश्वविद्यालयों समेत 11 संगठनों द्वारा तैयार किया जाने वाला आर्कटिक रिसाइलेंस रिपोर्ट बिल्कुल सही समय पर आया है. ऐसे में जब पूरी दुनिया के देशों के लिए जलवायु परिवर्तन बेहद चिंता का विषय बन चुका है, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नासा द्वारा जलवायु परिवर्तन और अन्य संघीय एजेंसियों द्वारा अंतरिक्ष के अन्वेषण के लिए इस्तेमाल किए जा रहे बजट के पुनर्आवंटन की योजना बना रहे हैं.
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