महिला और बाल विकास मंत्रालय ने ‘जेलों में महिलाएं’ विषय पर रिपोर्ट जारी की

Jun 26, 2018, 15:44 IST

इस रिपोर्ट में 134 सिफारिशें की गई हैं, ताकि जेल में बंद महिलाओं के जीवन में सुधार लाया जा सके. गर्भधारण तथा जेल में बच्‍चे का जन्‍म, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, कानूनी सहायता, समाज के साथ एकीकरण और उनकी सेवाभाव जिम्‍मेदारियों पर विचार के लिए ये सिफारिशें की गई हैं.

Ministry of Women and Child Development launches report on ‘Women in Prisons’
Ministry of Women and Child Development launches report on ‘Women in Prisons’

केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने 25 जून 2018 को ‘जेलों में महिलाएं’ विषय पर एक रिपोर्ट जारी की है. रिपेार्ट में राष्‍ट्रीय आदर्श जेल मैन्‍युअल 2016 में विभिन्‍न परिवर्तन का सुझाव दिया गया है ताकि इसे अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया जा सके.

इस रिपोर्ट में 134 सिफारिशें की गई हैं, ताकि जेल में बंद महिलाओं के जीवन में सुधार लाया जा सके. गर्भधारण तथा जेल में बच्‍चे का जन्‍म, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, कानूनी सहायता, समाज के साथ एकीकरण और उनकी सेवाभाव जिम्‍मेदारियों पर विचार के लिए ये सिफारिशें की गई हैं.

                                                             उद्देश्‍य

इस विषय का मुख्य उद्देश्‍य महिला बंदियों के विभिन्‍न अधिकारों के बारे में समझदारी कायम करना, उनकी समस्‍याओं पर विचार करना और उनका संभव समाधान करना है.

 

‘जेलों में महिलाएं’ विषय पर रिपोर्ट:

  • रिपोर्ट में महिला बंदियों की अनेक समस्‍याओं को कवर किया गया है और इसमें बुजुर्गों तथा दिव्‍यांग लोगों की आवश्‍यकताओं को शामिल किया गया है. रिपोर्ट में न केवल गर्भवती महिलाओं की आवश्‍यकताओं पर बल दिया गया है बल्कि उन महिलाओं पर भी विचार किया गया है जिन्‍होंने हाल में बच्‍चे को जन्‍म दिया गया है लेकिन उनके बच्‍चे जेल में उनके साथ नहीं हैं.
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि जेल में बंद करने से पहले सेवा देखभाल जिम्‍मेदारी वाली महिलाओं को अपने बच्‍चों को प्रबंध करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
  • रिपोर्ट में उन विचाराधीन महिला कैदियों को जमानत देने की सिफारिश की गई है जिन्‍होंने अधिकतम सजा का एक तिहाई समय जेल में बिताया है. ऐसा कानूनी प्रक्रिया संहिता के अनुच्‍छेद 436 ए में आवश्‍यक परिवर्तन करके किया जा सकता है. इस अनुच्‍छेद में अधिकतम सजा की आधी अवधि पूरी करने पर रिहाई का प्रावधान है.
  • जेलों में शिकायत समाधान व्‍यवस्‍था अपर्याप्‍त है और इस व्‍यवस्‍था में दुरूपयोग और बदले की भावना से काम करने की गुंजाइश बनी हुई है.   
  • बंदियों की मानसिक आवश्‍यकताओं को ध्‍यान में रखते हुए रिपेार्ट में सिफारिश की गई है कि कम से कम साप्‍ताहिक आधार पर बंदियों का संपर्क महिला काउंसिलरों और महिला मनोवैज्ञानिकों से हो सके.
  • जेल में बंद महिलाओं को अपने पुरूष बंदियों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्‍योंकि उनकी बंदी से उन पर सामाजिक धब्‍बा लगता है क्‍योंकि महिला बंदी वित्‍तीय रूप से अपने परिवारों और पतियों पर निर्भर करती हैं.
  • प्रसव पश्‍चात के चरणों में महिलाओं की आवश्‍यकताओं पर विचार करते हुए रिपोर्ट में माताओं के लिए बच्‍चा जन्‍म देने के बाद पृथक आवासीय व्‍यवस्‍था की सिफारिश की गई है, ताकि साफ-सफाई का ध्‍यान रखा जा सके और नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सके.
  • कानूनी सहायता को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी विचार-विमर्श गोपनीयता के साथ और बिना सेंसर के किया जाना चाहिए.
  • समाज में महिलाओं का फिर से एकीकरण गंभीर समस्‍या है क्‍योंकि जेल में बंद होने से महिलाओं पर धब्‍बा लगता है. महिला और बाल विकास मंत्रालय के एक अध्‍ययन में पाया गया है कि जेल में बंद महिलाओं को उनके परिवारों द्वारा छोड़ दिया गया है.
  • रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि जेल अधिकारी स्‍थानीय पुलिस के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए समन्‍वय करें कि महिला बंदी रिहाई के बाद प्रताड़ित न हों. बंदी महिलाओं को मताधिकार देने की सिफारिश की गई है. 

                                                                     तथ्य एवं आँकड़े

  • मंत्रालय ने कुछ आंकड़े जारी करते हुए बताया कि वर्ष 2015 के डेटा के अनुसार, भारतीय जेलों में 4,19,623 कैदी बंद हैं, जिसमें 17,834 यानी लगभग 4.3 फीसद महिलाएं हैं. इनमें से करीब 11,916 महिला विचाराधीन कैदी हैं.
  • भारतीय जेलों के पांच सालों में किए जाने वाले विश्लेषण में कहा गया है कि महिला कैदियों की संख्या में तेजी से बढ़ रही है.
  • वर्ष 2000 में जहां महज 3.3 फीसदी थीं वह वर्ष 2015 में 4.3 फीसदी हो गई हैं. ज्यादातर महिला कैदियों की उम्र 30-50 के बीच है.

 

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