प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जुलाई 2017 को इजरायल दौरे के आखिरी दिन हाइफा में जाकर प्रथम विश्व युद्ध में शहीद होने वाले भारतीय सैनिक को श्रद्धांजलि अर्पित की. उनके साथ इजरायल के प्रधानमंत्री मिन नेतन्याहू भी थे.
भारतीय सैनिकों ने जिस तरह से इजरायल के शहर के बचाने के लिए अपने प्राण बलिदान किए, उसकी मिसाल इतिहास में कहीं और नहीं है. भारतीय सेना प्रत्येक वर्ष 23 सितंबर को हाइफा दिवस के रूप में मनाती है. यह दिन दो कैवेलरी रेजिमेंट की बहादुरी एवं साहस की याद में मनाया जाता है. इन दोनों रेजिमेंट्स ने हाइफा को ओटोमन साम्राज्य से बचाने में अपना सर्वस्व झोंक दिया था. ये दोनों कैवेलरी 5वीं इम्पीरियल सर्विस कैवेलरी ब्रिगेड का हिस्सा थीं.
कैप्टन अमन सिंह बहादुर और दफादार जोर सिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (आईओएम) से सम्मानित किया गया जबकि कैप्टन अनूप सिंह और सेकंड लेफ्टिनेंट सागत सिंह को युद्ध में उनकी बहादुरी हेतु मिलिट्री क्रॉस प्रदान या गया. मेजर दलपत सिंह को शहर को आजाद कराने में अहम भूमिका हेतु हीरो ऑफ हाइफा के तौर पर जाना जाता है. उन्हें उनकी बहादुरी हेतु मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया.
भारतीय सैनिकों के बलिदान को अमर करने के लिए हाइफा नगरपालिका ने वर्ष 2012 में उनकी बहादुरी के किस्सों को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया था.
ब्रिटिश साम्राज्य ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1918 में फिलिस्तीन को आटोमान साम्राज्य से मुक्त कराने का निर्णय लिया. इसमें जोधपूर, मैसूर और हैदराबाद की घुड़सवार रेजिमेंट शामिल थी.
इन सैनिकों ने हाइफा को तुर्क-जर्मन सेना से मुक्त कराने में बहुत मदद की थी. 23 दिसंबर 1918 को लड़े गए इस युद्ध में 44 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. इन्ही सैनिकों के सम्मान में इजराइल ने यहां मेमोरियल बनाया है.
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