प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2018 को बिहार के मधेपुरा की रेल इंजन फैक्ट्री में बने देश के सबसे शक्तिशाली इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव इंजन (12,000 एचपी) का शुभारंभ किया है.
इसके साथ ही भारत अब रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी के साथ उन देशों की सूची में शामिल हो गया, जिनके पास इस क्षमता का रेल इंजन है. इस परियोजना को तैयार करने में कुल 1300 करोड़ रुपये की लागत आई है. अभी तक भारत के पास 6,000 एचपी का ही इंजन था.
प्रधानमंत्री ने इनके अलावा कटिहार-दिल्ली हमसफर एक्सप्रेस का शुभारंभ किया. मुजफ्फरपुर-सुगौली-वाल्मीकिनगर रेलखंड का भी शिलान्यास किया.
यह परियोजना निर्धारित समय पर तैयार होने वाली रेलवे के 100 प्रतिशत विद्युतीकरण और टिकाऊ गतिशीलता की दिशा में सरकार और भारतीय रेलवे के लक्ष्य के अनुसार काम करेगी. ये नए लोकोमोटिव न केवल रेलवे के लिए परिचालन लागत में कमी लाएंगे बल्कि इससे ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में भी कमी लाई जा सकेगी.
देश का पहला सबसे शक्तिशाली इंजन:
• यह इंजन बिहार के मधेपुरा जिले के चकला स्थित रेल इंजन कारखाने में निर्मित किया गया है.
• यह इंजन मालगाड़ियों को 120 किलोमीटर और सवारी गाड़ियों को 200 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से खीचने में सक्षम है.
• यह नवनिर्मित रेल इंजन मालगाड़ियों की रफ्तार व उनके माल ढुलाई की क्षमता में सुधार करेगा.
• भारी-ढुलाई क्षमता वाले इन रेल इंजनों को कोयला और लौह अयस्क के परिवहन में इस्तेमाल में लाया जायेगा.
इंजन की खासियत:
• यह इंजन पूरी सुरक्षा के साथ सभी प्रकार की पटरियों पर दौड़ सकता है.
• सुरक्षा और संरक्षा की नई तकनीक के चलते इस इंजन के पटरी से उतरने की संभावना बहुत कम है.
• सर्दियों के कोहरे में भी इसकी रफ्तार काम नहीं होगी.
• किसी भी दुर्घटना की स्थिति में इस इंजन में स्वतः इमरजेंसी ब्रेक लग जाएंगे.
• यह इंजन डीप फॉग वाचिंग डिवाइस से लैस है.
• इंजन के 90 प्रतिशत पार्ट्स स्वदेशी तकनीक से निर्मित हैं.
• यह इंजन नौ हजार टन तक माल खींच पाएगा.
पृष्ठभूमि:
इस रेल इंजन को लेकर भारत और फ्रांस के बीच नवंबर 2015 में समझौता हुआ था. अनुबंध समझौते के अनुसार, पहले पांच रेल इंजनों का आयात किया जाएगा, जबकि बाकी 795 रेल इंजनों का निर्माण देश में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत किया जाएगा. भारी-ढुलाई वाले रेल इंजनों को कोयला और लौह अयस्क के परिवहन में इस्तेमाल में लाया जाएगा.
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