भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 06 जून 2018 को शहरी सहकारी बैंकों को स्वेच्छा के आधार पर लघु वित्तीय बैंक का दर्जा देने का फैसला किया है.
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की दूसरी द्विवार्षिक बैठक के बाद जारी बयान में बताया गया, लघु वित्तीय बैंकों (एसएफबी) के लिए तय मानकों को पूरा करने वाले शहरी सहकारी बैंकों को स्वेच्छा के आधार पर एसएफबी में बदलने की अनुमति देने का फैसला किया गया है.
उल्लेखनीय है कि आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गाँधी की अध्यक्षता वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने एक से ज्यादा राज्यों में कारोबार कर रहे शहरी सहकारी बैंकों को ज्वाइंट स्टॉक कंपनियों तथा अन्य शहरी सहकारी बैंकों को लघु वित्तीय बैंकों में स्वेच्छा के आधार पर बदलने की अनुमति देने की सिफारिश की थी. शहरी सहकारी बैंकों पर अध्यक्षता वाली समिति ने इस तरह की सिफारिश अगस्त 2015 में की थी.
लघु वित्तीय बैंकों (एसएफबी) के लिए तय मानक |
शहरी सहकारी बैंकों को लघु वित्तीय बैंक का दर्जा प्राप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण मापदंडो से गुजरना पड़ता है, जो ये हैं:
शहरी सहकारी बैंकों का पूंजीगत ढांचा छोटे वित्तीय बैंकों को अपनी समायोजित शुद्ध बैंक उधारी का 75 फीसदी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को कर्ज देना होता है. |
शहरी सहकारी बैंकों को यूनिवर्सल वाणिज्यिक बैंकों में तब्दील होने के लिए जरूरी खाका बनाना होगा क्योंकि देश में वित्तीय क्षेत्र में बदलाव हो रहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बड़े शहरी सहकारी बैंकों की महत्वाकांक्षा पर भी नियंत्रण रखा जाना चाहिए.
रिजर्व बैंक की योजना ज्यादा से ज्यादा बैंकिंग कंपनियों को अखिल भारतीय स्तर पर भुगतान मंच पर लाने की है ताकि इस क्षेत्र में नवोन्मेष और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जा सके.
लघु वित्तीय बैंक क्या है?
लघु वित्त बैंक आबादी के एक निश्चित जनसांख्यिकीय हिस्से और उससे संबंधित आवश्यकताओं पर केंद्रित बैंक होते हैं.
ये बैंक कमज़ोर वर्ग के लोगों के मध्य ऋण देने की गतिविधि को संपादित करते हैं.
इस बैंक का गठन का मुख्य उद्देश्य छोटे व सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्योगों एवं अन्य संगठित क्षेत्रों की संस्थाओं आदि को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना हैं.
ये बैंक मुख्य रूप से कृषि विकास तथा सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों आदि से जमा राशि स्वीकार करने तथा उन्हें ऋण देने में सक्षम हैं.
ये गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवाओं की गतिविधियों के लिये सहायक कंपनियों की स्थापना नहीं कर सकते.
ये बड़ी कंपनियों और समूहों को ऋण नहीं दे सकते.
लघु वित्त बैंक पेंशन, म्यूचुअल फंड व बीमा आदि की बिक्री कर सकने में सक्षम हैं.
भुगतान बैंकों में जहाँ 75% तक का डिपोजिट सरकारी बॉण्डों में होता है, वहीं लघु वित्त बैंकों में इतनी ही मात्रा की जमा राशि प्राथमिक क्षेत्रों के लिये होती है.
शहरी सहकारी बैंक क्या हैं?
प्राथमिक सहकारी बैंक, जो शहरी सहकारी बैंकों के नाम से भी जाने जाते हैं, शहरी और नगरी क्षेत्रों के ग्राहकों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है.
शहरी सहकारी बैंकों को या तो संबंधित राज्य के राज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम के तहत पंजीकृत किए जाते हैं या बहु राज्य सहकारी सासाइटी अधिनियम, 2002 के अंतर्गत पंजीकृत होते हैं, जब बैंक एक से अधिक राज्य में परिचालनरत हो.
विविधता स्वरूप होने के कारण इस क्षेत्र के बैंकों का विषमतापूर्ण भौगलिक फैलाव है.
यद्यपि इनमें कई बैंक किसी शाखा नेटवर्क के बिना इकाई बैंक के रूप में कार्य करते हैं, फिर भी, कुछ बैंकों के आकार बड़े हैं तथा वे एक से अधिक राज्य में स्थित हैं.
शहरी सरकारी बैंक शहरी और अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक सहकारी बैंकों को दर्शाता है.
प्रारंभ में इन बैंकों को गैर-कृषि प्रयोजनों के लिए और अनिवार्य रूप से छोटे उधारकर्ताओं एवं व्यवसाय के लिए पैसे उधार देने की अनुमति प्रदान की गई. आज इनका कार्य अपने क्षेत्र में काफी बढ़ गया है.
सहकारी बैंक दोहरे नियंत्रण की व्यवस्था में काम करते हैं - आरबीआई और राज्य सरकार, दोनों की निगरानी होती है.
सहकारी बैंकों के विनियमन पर आरबीआई के पास शक्ति का अभाव है और वाणिज्यिक बैंकों के हिसाब से आरबीआई इसकी निगरानी नहीं कर पाता है. ये चीजें शहरी सहकारी बैंकों के वाणिज्यिकरण में बाधा है.
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