5 अप्रैल 2015 को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पहला द्वि–मासिक मौद्रिक नीति कथन 2016–17 जारी किया.
इस नीति के तहत की गई मुख्य घोषणाओं में से एक थी आरबीआई द्वारा वित्तीय प्रणाली पर लगाए जाने वाली रेपो दर में कमी.
नीति की मुख्य विशेषताएं
• चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF) के तहत नीति रेपो दर में 25 बेसिक प्वाइंट्स की कमी की गई है. यह 6.75 फीसदी से कम होकर अब 6.50 फीसदी हो गया है, पांच वर्षों की यह सबसे कम दर है.
• नकद आरक्षित अनुपात (कैश रिजर्व रेश्यो– CRR) का न्यूनतम दैनिक रखरखाव को 95 फीसदी से घटाकर 90 फीसदी कर दिया गया है. यह 16 अप्रैल 2016 से शुरू हो रहे पखवाड़े से प्रभावी हो जाएगा.
• पॉलिसी रेट कॉरिडोर (नीतिगत दर गलियारा) को +/-100 बेसिक प्वाइंट्स (बीपीएस) से +/- 50 बीपीएस कर दिया जाएगा. इस वजह से रिवर्स रेपो रेट , रेपो रेट की तुलना में 50 बेसिक प्वाइंट्स कम हो जाएगा और एमएसएफ रेट रेपो रेट की तुलना में 50 बेसिक प्वाइंट्स अधिक हो जाएगा.
• इससे पहले रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट से 100 बेसिक प्वाइंट्स कम होता था और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) रेट रेपो रेट से 100 बेसिक प्वाइंट्स अधिक होता था.
वर्तमान एवं उभरते हुए व्यापक आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर नीतिगत दरों में निम्नलिखित प्रमुख बदलावों की घोषणा की गई है –
• रेपो रेट- चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF) के तहत नीति रेपो दर में 25 बेसिक प्वाइंट्स की कमी की गई है. यह 6.75 फीसदी से कम होकर अब 6.50 फीसदी हो गया है.
• एलएएफ के तहत रिवर्स रेपो रेट- 6.0 फीसदी पर समायोजित
• कैश रिजर्व रेश्यो (CRR)- निवल मांग और मियादी देयताओं (NDTL) के 4.0 फीसदी पर अपरिवर्तित
• सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) रेट- 7.0 फीसदी
• बैंक रेट- एमएसएफ के साथ रखे गए बैंक दर को भी 7.0 फीसदी पर समायोजित किया गया है.
दरों में कटौती क्यों जरूरी थी ?
• मुद्रास्फीति की दर का अनुमान प्रक्षेप वक्र के साथ किया गया है और जनवरी 2016 के निर्धारित किया गया लक्ष्य मामूली अंडरशूट्स के साथ प्राप्त किया गया.
• CPI मुद्रास्फीति के साधारण घोषित किए जाने की उम्मीद है और छोटे अंतर– तिमाही बदलावों के साथ 2016–17 के दौरान यह करीब 5 फीसदी बना रहेगा,
• 2015–16 में विकास में असमान वसूली का 2016–17 में धीर– धीरे मजबूत होने की संभावना है.
• यह अनुमान सामान्य मॉनसून के आधार पर लगाया गया है, 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों और ओआरओपी को लागू करने एवं मौद्रिक नीति जारी रखने के बाद खपत की मांग में तेजी आने की संभावना है.
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