भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के सबसे युवा डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने इस्तीफा दे दिया है. विरल आचार्य ने अपने निर्धारित कार्यकाल से छह महीने पहले इस्तीफा दे दिया है. आचार्य की नियुक्ति तीन साल के लिये हुई थी.
विरल आचार्य को तीन साल के कार्यकाल के लिए 23 जनवरी 2017 को आरबीआई में शामिल किया गया था. उनका तीन साल का कार्यकाल जनवरी, 2020 में पूरा होना था. आपको बता दें कि इससे पहले आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने दिसंबर 2018 में निजी कारण बताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
न्यूयार्क विश्वविद्यालय के वित्त विभाग में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विरल आचार्य वित्तीय क्षेत्र में प्रणालीगत जोखिम क्षेत्र में विश्लेषण और शोध के लिये जाने जाते हैं. |
मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान राय
विरल आचार्य ने पिछले दो बार से मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान आर्थिक विकास और महंगाई, दोनों मुद्दों पर उनकी अलग राय आई. हाल ही में मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास और डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के बीच वित्तीय घाटा और इसका सही-सही आकलन के मुद्दे पर असहमति दिखी.
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तीसरा सबसे बड़ा इस्तीफा
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था के हिसाब से उर्जित पटेल का तीसरा बड़ा इस्तीफा था. इससे पहले अरविंद सुब्रमण्यम ने जुलाई 2018 में व्यक्तिगत कारणों से मुख्य आर्थिक सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया था. वहीं अगस्त 2017 में नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविंद पनगढ़िया ने पद छोड़ दिया.
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विरल आचार्य के बारे में:
आरबीआई ज्वाइन करने से पहले विरल आचार्य अकादमिक क्षेत्र से जुड़े रहे हैं. वह न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं. आईआईटी मुंबई के छात्र रहे विरल विरल आचार्य ने साल 1995 में कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में स्नातक और न्यूयार्क विश्वविद्यालय से साल 2001 में वित्त में पीएचडी की है. वर्ष 2001 से 2008 तक आचार्य लंदन बिजनेस स्कूल में रहे.
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