सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई 2018 को कावेरी के तट पर स्थित दक्षिण भारत के चार राज्यों के बीच सुगम तरीके से जल बंटवारा सुनिश्चित करने हेतु कावेरी प्रबंधन योजना संबंधी केन्द्र सरकार के मसौदे को मंजूरी दे दी.
इस फैसले को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पारित किया. न्यायालय ने कावेरी योजना को अंतिम रूप न दे पाने को लेकर तमिलनाडु द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ दायर अवमानना याचिका को भी खारिज कर दिया.
पृष्ठभूमि |
|
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 16 फरवरी के फैसले:
• सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि वह अपने अंतरराज्यीय बिलीगुंडलु बांध से कावेरी नदी का 177.25 टीएमसीएफटी जल तमिलनाडु के लिए छोड़े.
• फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि कर्नाटक को अब प्रति वर्ष 14.75 टीएमसीएफटी जल अधिक मिलेगा जबकि तमिलनाडु को 404.25 टीएमसीएफटी जल मिलेगा जो न्यायाधिकरण द्वारा वर्ष 2007 में निर्धारित जल से 14.75 टीएमसीएफटी कम होगा.
• यह आदेश प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति अमिताव रॉय और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने सुनाया.
• सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को कावेरी बेसिन के नीचे कुल 20 टीएमसीएफटी जल में से अतिरिक्त 10 टीएमसीएफटी भूजल निकालने की अनुमति भी दी.
• कोर्ट ने कहा कि कावेरी जल आवंटन पर उसका फैसला आगामी 15 वर्षों तक लागू रहेगा.
कावेरी जल विवाद?
• कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में गम्भीर विवाद है.
• इस विवाद की जड़ें भूतपूर्व मद्रास प्रेसिडेन्सी तथा मैसूर राज्य के बीच वर्ष 1892 एवं वर्ष 1924 में हुए दो समझौते हैं.
• दोनों ही समझौतों से यही बात सामने आई कि वर्तमान जल प्रणाली पर उपर किए जाने वाले नए कार्यों की वजह से बाधा नहीं डाली जाएगी और नीचले इलाकों में होने वाली सिंचाई के लिए पानी की कटौती नहीं होगी. इसके अलावा, व्यवस्था चरण के सभी कार्यों की पुष्टि अनुप्रवाह राज्य सरकार (यानि कावेरी के मामले में तमिलनाडु) करेगी.
• कर्नाटक ने इन व्यवस्थाओं या समझौतों पर अमल नहीं किया. बजाए इसके, उसने केंद्र सरकार, योजना आयोग और केंद्रीय जल आयोग की अनुमति लिए बगैर कावेरी की सहायक नदियों पर बांध बनाकर चार नई परियोजनाएं शुरु कर दीं.
• वर्ष 1910 में मैसूर प्रशासन ने कन्नाम्बाडी में एक जलाशय बनाने का प्रस्ताव दिया और 1892 में हुए समझौते के तहत मद्रास सरकार से सहमति की उम्मीद की. चूंकि मद्रास सरकार इस बात से सहमत नहीं थी, मामला मध्यस्थता के अधीन चला गया.
• मध्यस्थता बोर्ड का अनुदान मद्रास सरकार के लिए पर्याप्त नहीं था और उन्होंने इस पर पुनर्विचार करने को कहा. जब भारत सरकार ने मध्यस्थता नहीं की तब वर्ष 1924 के समझौते पर सहमति बनाने का प्रयास शुरु कर दिया गया.
यह भी पढ़ें: तलाक के बाद भी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकायत कर सकती हैं: सुप्रीम कोर्ट
Comments
All Comments (0)
Join the conversation