सुप्रीम कोर्ट ने 30 जून 2016 को समलैंगिकों को ट्रांसजेंडर की श्रेणी में शामिल करने से इनकार कर दिया. समलैंगिकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका के माध्यम से मांग की थी कि उन्हें ट्रांसजेंडर की श्रेणी में शामिल किया जाय.
फैसले में जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस एनवी रमना की पीठ ने स्पष्ट किया कि पूर्व में 15 अप्रैल 2014 के आदेश से पूरी तरह स्पष्ट है कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों पर अपने 2014 के आदेश में संशोधन से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग तीसरा लिंग यानी ट्रांसजेंडर नहीं हैं.
केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) मनिंदर सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि पूर्व के आदेश से यह स्पष्ट नहीं है कि समलैंगिक महिला, पुरुष व उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर हैं या नहीं.
उन्होंने कहा कि इस संबंध में एक स्पष्टता की आवश्यकता है.
ट्रांसजेंडरों की दलील-
- ट्रांसजेंडर कार्यकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि केंद्र शीर्ष न्यायालय के 2014 के आदेश को पिछले दो साल से यह कहकर क्रियान्वित नहीं कर रहा है कि उसे ट्रांसजेंडरों के मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता है.
- इस आदेश में कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों को ओबीसी का दर्जा देने का निर्देश दिया था.
न्यायलय का स्पष्टीकरण-
- पीठ इस पर नाराज हो गई और एएसजी से पूछा, हमें अर्जी को क्यों न जुर्माने के साथ खारिज कर देना चाहिए.
- पीठ ने कहा, किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है.
- यह बिल्कुल साफ है कि समलिंगी ट्रांसजेंडर नहीं हो सकते.
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