वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा हाल ही किए गये शोध में दावा किया गया है कि उन्होंने याद्दाश्त को एक जीव से निकालकर दूसरे जीव में प्रत्यारोपित किया है.
वैज्ञानिकों की इस टीम ने कहा है कि हमारे मस्तिष्क में मौजूद याद्दाश्त जेनेटिक कोड में रखी होती हैं जिसे मेमोरी सूप भी कहा जा सकता है. इसे एक घोंघे से निकालकर दूसरे घोंघे में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया.
याद्दाश्त प्रत्यारोपण के मुख्य बिंदु
• लॉस एंजिलिस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसीएलए) के विशेषज्ञों ने इस संबंध में सफलता पूर्वक प्रयोग को अंजाम दिया है.
• इस अनोखे प्रयोग में वैज्ञानिकों ने समुद्री घोंघा की यादों को एक से निकालकर दूसरे घोंघे में प्रत्यारोपित कर दिया.
• इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक घोंघे का जेनेटिक मेसेंजर मॉलीक्यूल रीबोन्यूक्लीक एसिड (आरएनए) को निकालकर दूसरे में स्थापित कर दिया.
प्रयोग की पुष्टि कैसे हुई? |
एक अन्य प्रयोग में वैज्ञनिकों ने लैब में आरएनए खुले न्यूरॉन के साथ पेट्रि डिश में डाल दिया. इसे 24 घंटे बाद देखने पर पता लगा कि इसमें न्यूरोनल एक्साईटबिलिटी में बढ़ोतरी देखी गई. वैज्ञानिकों ने बताया कि दोनों प्रयोगों का अर्थ यह हुआ कि आरएनए में मौजूद कुछ बातें जिन्हें अब तक सिर्फ एक घोंघा जानता था, वह अब दूसरे को भी याद हैं. यह बेहद साधारण यादें हैं, जैसे घोंघा को मिला झटका. दरअसल, समुद्री घोंघा झटकों को भूलता नहीं है, झटका लगने पर वह मस्तिष्क को तंत्रिका तंत्र के जरिये संकेत देता है, इस संकेत पर उसके पेट पर लटक रही मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं. यह साधारण याद्दाश्त पर आधारित साधारण बर्ताव था, जिसके जरिये वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को सरल रूप में पेश किया. |
शोध का लाभ
यदि यह शोध पूरी तरह सफल रहता है तो इसे मनुष्यों के लिए लाभदायक माना जा सकता है. याद्दाश्त को एक जीव से निकालकर दूसरे जीव में प्रत्यारोपित किया जा सकता है. इस तरह दूसरे जीव को भी कुछ ऐसी बात याद रहेंगी, जो सिर्फ पहले जीव को ही पता थीं. कोमा अथवा याद्दाश्त समाप्त हो जाने की स्थिति में यह लाभदायक हो सकता है.
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