सुप्रीम कोर्ट ने 08 जुलाई 2021 को कड़े लहजे में कहा कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में लोगों को प्रभावित करने की ताकत होती है. इन प्लेटफॉर्मों पर बहस और पोस्ट में समाज का ध्रुवीकरण करने की क्षमता हो सकती है, क्योंकि समाज के कई सदस्यों के पास इसकी सत्यता की पुष्टि करने के लिए संसाधन नहीं होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों को लेकर कथित भूमिका को लेकर दिल्ली विधानसभा समिति की ओर समन दिए जाने के खिलाफ फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट अजीत मोहन की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की. साथ ही कोर्ट ने कहा कि दिल्ली फरवरी, 2020 के सांप्रदायिक दंगों की पुनरावृत्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती है. लिहाजा इस संबंध में सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक की भूमिका की जांच की जानी चाहिए.
188 पन्नों के फैसले में जस्टिस ने क्या कहा?
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने 188 पन्नों के फैसले में कहा कि फेसबुक के भारत में 27 करोड़ यूजर्स हैं. ऐसे में उसे जवाबदेह होना ही होगा. फेसबुक को बोलने की आजादी के लिए गंभीर भूमिका निभाई है.
शांति और सद्भाव समिति
दिल्ली विधानसभा द्वारा दिल्ली दंगों (2020) की जांच के लिए शांति और सद्भाव समिति के गठन को गलत या नाजायज नहीं माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विधानसभा एक स्थानीय विधायिका और शासकीय निकाय होती है और इस नाते यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी चिंताएं गलत या नाजायज हैं.
सोशल मीडिया पर चीजों को तोड़-मरोड़कर पेश करना
कोर्ट ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया एक लोकतांत्रिक सरकार की नींव है. चुनाव प्रक्रिया तब खतरे में पड़ जाती है, जब सोशल मीडिया पर चीजों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है. इससे कई बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कभी-कभी अनियंत्रित रूप से बेकाबू हो सकती है और उसके लिए खुद चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं.
सवाल करने का अधिकार
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द समिति के पास यह पूरा अधिकार है कि वह फेसबुक के अधिकारियों को किसी मसले पर समन कर सके. समिति के पास सवाल करने का अधिकार है, लेकिन वह कोई सजा नहीं सुना सकती है.
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