सुप्रीम कोर्ट ने 23 जुलाई 2018 को कहा कि जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने या धरना देने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लग सकता है. कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह ऐसे प्रदर्शनों की अनुमति देने के लिए दिशा-निर्देश तय करे.
जस्टिस एके सिकरी और अशोक भूषण की पीठ ने आंदोलनकारियों को जंतर-मंतर, बोट क्लब और अन्य जगहों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की इजाजत दे दी है.
फैसले से संबंधित मुख्य तथ्य:
- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के जंतर मंतर और बोट क्लब और अन्य जगहों पर धरना और प्रदर्शन पर लगी रोक को हटाने का आदेश दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि धरना और प्रदर्शन पर पूरी तरह रोक नहीं लगा सकते.
- कोर्ट ने आंदोलनकारियों को दिल्ली पुलिस के दिशा निर्देश के तहत प्रदर्शन करने की छूट दी गई है और दिल्ली पुलिस को आंदोलन को लेकर दिशा-निर्देश तय करने का निर्देश दिया है.
- मजदूर किसान शक्ति संगठन और अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश को चुनौती दी थी और सेंट्रल दिल्ली में शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन करने की इजाजत देने की मांग की थी.
पृष्ठभूमि:
- एनजीटी ने 05 अक्टूबर 2017 को जंतर मंतर क्षेत्र में सभी तरह के प्रदर्शन और धरनों पर रोक लगा दी थी.
- एनजीटी ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों द्वारा इस क्षेत्र का लगातार इस्तेमाल वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1981 समेत पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन है.
- कोर्ट ने नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को तब कनॉट प्लेस के निकट स्थित जंतर मंतर रोड़ से सभी अस्थायी ढांचों, लाउडस्पीकरों और जन उद्घोषणा प्रणालियों को हटाने के निर्देश दिए थे.
- एनजीटी ने प्रदर्शनकारियों, आंदोलनकारियों और धरने पर बैठे लोगों को वैकल्पिक स्थल के रूप में अजमेरी गेट में स्थित रामलीला मैदान में तुरंत स्थानांतरित करने के अधिकारियों को निर्देश दिया था.
- एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शांतिपूर्ण और आरामदायक ढंग से रहने का अधिकार है और उनके आवासों पर प्रदूषण मुक्त वातावरण होना चाहिए.
- एनजीटी ने यह फैसाल एक याचिका पर सुनाया था. याचिका में आरोप लगाया गया था कि जंतर-मंतर पर सामाजिक समूहों, राजनीतिक पार्टियों, एनजीओ द्वारा किये जाने वाले आंदोलन और जुलूस क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत हैं.
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