सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितम्बर 2018 को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सांसदों व विधायकों पर वकालत करने से रोक लगाने की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा है कि सांसद और विधायकों को बतौर वकील कोर्ट में प्रैक्टिस करने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि राजनेता कोई पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं हैं.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया' के नियम 49 के तहत वकालत पर रोक केवल ऐसे लोगों पर है जो वेतनप्राप्त पूर्णकालिक कर्मचारी हैं और विधायक या सांसद इसके तहत नहीं आते हैं.
यह फैसला प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनाया है.
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल:
केंद्र सरकार ने भी अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के जरिए इस याचिका का विरोध किया है. वेणुगोपाल की ओर से कोर्ट में कहा गया कि सांसद जनप्रतिनिधि हैं न कि केंद्र सरकार के पूर्णकालिक कर्मचारी. इसलिए उन्हें कोर्ट में प्रैक्टिस करने से नहीं रोका जा सकता. साथ ही अगर नेता अपनी क्षमताओं के अनुसार अलग से जनसेवा कर रहे हैं तो आप उनके प्रोफेशन को नहीं रोक सकते, क्योंकि वो उनका मूलभूत अधिकार है.
अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट में याचिका:
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी कि ऐसे सांसदों और विधायकों की कोर्ट प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाए. उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 का हवाला देते हुए ऐसे नेताओं की कोर्ट प्रैक्टिस को असंवैधानिक बताया था.
नोट: बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी, पी. चिदंबरम समेत बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद और मीनाक्षी लेखी जैसे बड़े नेता कोर्ट प्रैक्टिस भी करते रहे हैं.
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