उच्चतम न्यायालय ने वकीलों को वरिष्ठ का दर्जा देने हेतु भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्थाई समिति का गठन किया है. इसके अलावा अधिवक्ताओं की वरिष्ठता निर्धारित करने हेतु मानक तय करके दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं.
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को स्थाई समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ के अनुसार भारत के प्रधान न्यायाधीश के अलावा समिति में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों में से एक के वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होंगे. यह नियुक्ति परिस्थिति आधारित होगी.
तीन सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा भी शामिल हैं. पीठ ने एक स्थाई सचिवालय के गठन का प्रस्ताव भी रखा, स्थाई सचिवालय सम्बंधित वकील के बारे में जानकारी एकत्रित करके स्थाई समिति को अवगत कराएगा.
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प्रमुख तथ्य-
स्थाई समिति द्वारा विचार करने और नामों को स्वीकृति मिलने के बाद उन्हें, मामले के अनुसार उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ के समक्ष रखा जाएगा.
तीन सदस्यीय पीठ के अनुसार स्थाई सचिवालय उन अधिवक्ताओं की सूची वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा ताकि पक्षकार अपना रूख प्रस्तुत कर सकें. पीठ गोपनीय मतदान के माध्यम से, बहुमत से या सर्व सहमति से अधिवक्ता को वरिष्ठ का दर्जा देने पर फैसला करेगी.
भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस स्थाई समिति में उच्चतम/ उच्च न्यायालयों में से एक के वरिष्ठतम न्यायाधीश और बार काउंसिल के प्रतिनिधि के अलावा उच्चतम न्यायालय के संदर्भ में अटॉर्नी जनरल और उच्च न्यायालयों के संदर्भ में एड्वोकेट जनरल भी शामिल होंगे.
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अधिवक्ताओं को वरिष्ठ वकील का दर्जा देने के संबंध में फैसला करते हुए यह समिति विभिन्न पहलुओं पर विचार करेगी. इन पहलुओं में प्रैक्टिस के वर्ष, वकील जिन मुकदमों का हिस्सा रहे हैं उनके फैसले, प्रो बोना लिटिगेशन (अलग-अलग विषयों पर लड़े गए मुकदमे) और व्यक्तित्व परीक्षण अदि को सम्मिलित किया गया है.
किसी भी अधिवक्ता का वरिष्ठता का दर्जा देने से पूर्व उसका व्यक्तित्व परीक्षण किया जाएगा, साथ ही अधिवक्ता का साक्षात्कार भी लिया जाएगा.
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