तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में नीलकुरिंजी नामक पौधे के संरक्षण के लिए योजना की घोषणा की है. यह पौधा बारह वर्षों में एक बार खिलता है. हाल ही में सरकार को इस पौधे के फूलों की व्यापारिक बिक्री की शिकायतें मिली थी, जिसके बाद यह कदम उठाया गया.
नीलकुरिंजी पौधा
• यह एक किस्म का उष्णकटिबंधीय पौधा है. यह पौधा पश्चिमी घाट के शोला वन में पाया जाता है. पूर्वी घाट में यह पौधा शेवरॉय पहाड़ियों में पाया जाता है.
• यह पौधा केरल में अनामलाई हिल्स और अगाली हिल्स तथा कर्नाटक के संदुरु हिल्स में पाया जाता है.
• इस पौधे की लम्बाई 30 से 60 सेंटीमीटर होती है. यह पौधा 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर उगता है.
• नीलकुरिंजी के फूल बैंगनी-नीले रंग के होते हैं. इसमें 12 वर्षों में एक बार ही फूल खिलते हैं.
• इन फूलों के कारण ही पश्चिमी घाट की नीलगिरी पहाड़ियों को नीला पर्वत कहा जाता है.
• इसे दुर्लभ किस्म का पौधा घोषित किया गया है.
• यह पश्चिम घाट के अतिरिक्त विश्व के किसी दूसरे हिस्से में नहीं उगता. यह पौधा संकटग्रस्त पौधों की प्रजाति में शामिल है.
पौध-संरक्षण क्या होता है?
फसल-उत्पादन के लक्ष्य हासिल करने में पौध-संरक्षण की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. पौध संरक्षण के महत्वपूर्ण घटकों में समन्वित कीट प्रबंधन को प्रोत्साहन, फसल पैदावार को कीटों और बीमारियों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए सुरक्षित और गुणवत्तायुक्त कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, ज्यादा पैदावार देने वाली नई फसल प्रजातियों को तेजी से अपनाए जाने के लिए संगरोधन (क्वारन्टीन) उपायों को सुचारू बनाना शामिल है. इसके अंतर्गत बाहरी कीटों के प्रवेश की गुंजाइश समाप्त करना और पौध-संरक्षण कौशल में महिलाओं को अधिकारिता प्रदान करने सहित मानव संसाधन विकास पर भी ध्यान दिया जाता है.
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