श्री त्र्यंबकेश्वर देवस्थान ट्रस्ट ने 3 अप्रैल 2016 को अगले निर्णय तक सभी व्यक्तियों, पुरुषों और महिलाओं के मंदिर में प्रवेश से निषेध सम्बंधित एक प्रस्ताव पारित किया.
केवल पारंपरिक और वंशानुगत पुजारियों को ही मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश की इजाजत दी जाएगी.
एक ट्रस्टी के अनुसार मंदिर की भौगोलिक स्थिति के कारण गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा रही है.
बंबई उच्च न्यायालय का निर्णय
इससे पहले 30 मार्च 2016 को बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएच वाघेला और न्यायमूर्ति एमएस सोनक की पीठ ने यह फैसला सुनाया कि पूजा स्थलों पर महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए. महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.
यह फैसला वरिष्ठ अधिवक्ता नीलिमा वर्तक और कार्यकर्ता विद्या बाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान लिया गया था जिसमें महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शनिशिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मनाही को चुनौती दी गयी थी.
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं के प्रवेश की मांग को लेकर ब्रिगेड रंगरागिनी भूमाता और तृप्ति देसाई द्वारा दायर किए गए जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र हिंदू प्लेस (एंट्री प्राधिकार) अधिनियम, 1956 के तहत यदि कोई मंदिर या व्यक्ति, मंदिर में प्रवेश करने से किसी भी व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाता है तो उसे छह महीने की कैद की सजा का प्रावधान है.
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