राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 19 सितंबर 2018 को ट्रिपल तलाक को अपराध के दायरे में लाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. कैबिनेट ने ट्रिपल तलाक से जुड़े अध्यादेश को मंजूरी देते हुए राष्ट्रपति के पास भेजा था. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब ट्रिपल तलाक अपराध की श्रेणी में माना जाएगा.
यह अध्यादेश 6 महीने तक लागू रहेगा. इस दौरान सरकार को इसे संसद से पारित कराना होगा. सरकार के पास अब बिल को शीत सत्र तक पास कराने का वक्त है. तीन तलाक देना अब अपराध है.
बता दें कि तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है लेकिन राज्यसभा में लंबित है. कांग्रेस सहित विपक्ष के कुछ दल इस विधेयक के कुछ प्रावधानों में बदलाव की मांग करते रहे हैं.
तीन तालाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले: |
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 3:2 के मत से सुनाए गए फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिमों में तीन तलाक के जरिए दिए जाने वाले तलाक की प्रथा अमान्य, अवैध और असंवैधानिक है. इस याचिकओं पर सुनवाई करने वाले पांच न्यायाधीश अलग-अलग पांच धर्मों से थे, मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर (सिख), न्यायाधीश कुरियन जोसेफ (ईसाई), न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन (पारसी), न्यायाधीश उदय ललित (हिंदू) और न्यायाधीश अब्दुल नजीर (मुस्लिम). |
तीन तलाक अध्यादेश से संबंधित मुख्य तथ्य:
• नए बिल में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के मामले को गैर जमानती अपराध माना गया है लेकिन संशोधन के हिसाब से अब मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा.
• इसके तहत किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा.
• विधेयक में जो तीन संशोधन किए गए हैं उसके तहत तत्काल तीन तलाक के मामले में जमानत देने का प्रावधान किया गया है.
• साथ ही समझौते का रास्ता खोल दिया गया है. यही नहीं, तत्काल तीन तलाक की शिकायत करने का अधिकार पत्नी या उसके रक्त संबंधी तक सीमित कर दिया गया है.
• तीन तलाक पर अध्यादेश लाकर सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने की कोशिश तो की है लेकिन सरकार की यह कोशिश तब तक सफल नहीं होगी जब तक कि यह विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो जाता.
• तीन तलाक पर अध्यादेश को कानून बनाने के लिए सरकार को आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पारित कराना होगा.
तीन तलाक क्या है? |
तीन तलाक मुसलमान समाज में तलाक का वो जरिया है, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति तीन बार ‘तलाक’ बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है. ये मौखिक या लिखित हो सकता है, या हाल के दिनों में टेलीफोन, एसएमएस, ईमेल या सोशल मीडिया जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी तलाक दिया जा रहा है. तलाक का यह जरिया मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से कानूनी है, फिर भी बहुत सारी मुस्लिम वर्ग की महिलाएं इसका विरोध करती है. तीन तलाक के तहत मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है और पत्नी का वहां होना जरुरी भी नहीं होता है, यहां तक कि आदमी को तलाक के लिए कोई वजह भी लेनी नहीं पड़ती. भारत से पहले दुनिया के 22 ऐसे देश हैं जहां तीन तलाक पूरी तरह बैन है. दुनिया का पहला देश मिस्र है जहां तीन तलाक को पहली बार बैन किया गया था. |
पृष्ठभूमि:
मार्च, 2016 में उतराखंड निवासी शायरा बानो नाम की महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की. शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी. शायरा बानो द्वारा कोर्ट में दाखिल याचिका के अनुसार मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकी रहती है.
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