केंद्रीय कैबिनेट में तीनों कृषि कानूनों को वापिस करने वाले बिल को मंज़ूरी मिल गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा से सरकार और किसानों के बीच पिछले 14 महीने से चल रहा टकराव खत्म होने की उम्मीद बनी है. 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में इन कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रकाश पर्व के मौके पर देश के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने का घोषणा करके हर किसी को चौंका दिया था. हालांकि, प्रधानमंत्री की तरफ से कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के घोषणा के बावजूद किसान फिलहाल अपने आंदोलन को खत्म करने के लिए तैयार नहीं हैं.
24 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई. इसमें सर्वसम्मति से कृषि कानून की वापसी का बिल को मंजूरी मिल गई है. तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के विधेयकों को आगामी संसद सत्र में पेश किया जाएगा.
कृषि कानून की वापसी का रास्ता आसान
24 नवंबर की बैठक में तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के लिए बनाए गए बिल को मंजूरी दे दी गई है. इसके बाद अब कृषि कानून की वापसी का रास्ता आसान हो गया है. अब आगे की प्रक्रिया में 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में इन कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और विधिवत यह कानून निरस्त हो जाएगा.
वापसी का विधेयक पारित
भारत सरकार ने 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के लिए लोकसभा बुलेटिन में द फार्म लाज रिपील बिल, 2021 को सूचीबद्ध किया गया है. संसद के दोनों सदनों से कानूनों की वापसी का विधेयक पारित होने के बाद उस पर राष्ट्रपति अंतिम मुहर लगाएंगे. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही उसे गजट में प्रकाशित किया जाएगा.
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020
लोकसभा बुलेटिन के मुताबिक द फार्म लाज रिपील बिल, 2021 विधेयक 'किसान' उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता, कृषि सेवा अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को निरस्त करने के लिए पेश किया जाएगा.
तीन कृषि कानूनों का विरोध
केंद्र सरकार द्वारा 2020 में कानून पारित किए जाने के बाद से ही किसान संगठन लगातार तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. सरकार के फैसले के बावजूद आंदोलनकारी संगठनों ने कानूनों की संसद में वापसी तक आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है.
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