केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने 14 मार्च 2017 को लोक सभा में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 पेश किया. उमा भारती ने विधेयक को पेश करते हुए कहा कि अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे के लिए एक ‘क्रांतिकारी पहल’ है.
इस विधेयक में अंतर्राज्यीय जल विवाद निपटारों के लिए अलग-अलग अधिकरिणों की जगह एक स्थायी अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा अधिकतम छह सदस्य तक होंगे. इसेक साथ ही अध्यक्ष के कार्याकाल की समय सीमा पांच वर्ष अथवा उनके 70 वर्ष की आयु होने तक होगी.
अधिकरण के उपाध्यक्ष के कार्याकाल की अवधि और अन्य सदस्यों का कार्यकाल जल विवादों के निर्णय के साथ सह-समाप्ति आधार पर होगा. यह भी प्रस्ताव है कि अधिकरण को तकनीकी सहायता देने हेतु आकलनकर्ताओं की नियुक्ति की जाएगी. जो केन्द्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा में सेवारत विशेषज्ञों में से होंगे तथा जिनका पद मुख्य इंजीनियर से कम नहीं होगा.
उमा भारती ने बताया कि जल विवादों के निर्णय हेतु कुल समय अवधि अधिकतम साढ़े चार वर्ष तय की गई है. अधिकरण की पीठ का निर्णय अंतिम होगा तथा संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी होगा. सरकारी राजपत्र में इसके निर्णयों को प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होगी.
उमा भारती ने बताया कि अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के न्याय निर्णयन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने तथा वर्तमान कानूनी और संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने का विचार है.
उल्लेखनीय है कि राज्यों द्वारा जल की मांग बढ़ने के कारण अंतरराज्यीय नदी जल विवाद बढ़ रहे हैं. हालांकि, अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में ऐसे विवादों के समाधान के कानूनी ढांचे की व्यवस्था है, फिर भी इसमें बहुत से कमियां हैं. उक्त अधिनियम के तहत प्रत्येक अंतरराज्यीय नदी जल विवाद के लिए एक अलग अधिकरण स्थापित किया जाता है.
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