अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 08 मई 2018 को ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने की घोषणा की. बराक ओबामा के समय इस समझौते को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प पहले भी कई बार आलोचना कर चुके हैं.
राष्ट्रपति पद संभालने के बाद बीते 15 महीनों में देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर यह फैसला सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा था. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और ब्रिटेन के विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन हाल ही में ट्रंप पर दबाव बना चुके थे कि अमेरिका को इस समझौते से जुड़े रहना चाहिए. डोनाल्ड ट्रम्प कई मौकों पर कह चुके थे कि यदि इस समझौते को संशोधित नहीं किया गया तो अमेरिका इस समझौते से अलग हो जाएगा.
अन्य देश:
ईरान के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में से अमेरिका को छोड़कर बाकी सभी देश चाहते हैं कि ईरान के साथ तीन साल पहले हुआ अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौता बना रहे.
परमाणु समझौता होने के बाद जर्मनी की कंपनियों ने भी ईरान में बड़ा निवेश किया है. हाल ही में जारी हुई जर्मनी के ‘फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज’ की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान को जर्मनी का सालाना निर्यात वर्ष 2017 में बढ़कर 3.5 अरब डॉलर (20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा) हो गया है.
ईरान परमाणु समझौता |
ईरान परमाणु समझौता तेहरान और छह वैश्विक शक्तियों के बीच वर्ष 2015 में हुआ था. छह वैश्विक शक्तियों में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और ईरान शामिल हैं. इस समझौते के बाद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को रोक दिया था, जिसके बदले में अमरीका ने ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी थी.
समझौते के मुताबिक ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था और अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था, बदले में उसपर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में आंशिक रियायत दी गई थी.
ये समझौता राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में हुआ था. इस समझौते का दुनियाभर के कई देशों ने स्वागत किया और इसे संबंधों के सुधार की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना. |
अमेरिका क्यों समझौते से अलग हुआ?
अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि ईरान परमाणु समझौते का गलत इस्तेमाल कर रहा है. ईरान उसे मिल रही परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने में कर रहा है. परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है. वे सीरिया, यमन और इराक में शिया लड़ाकों जैसे संगठनों को हथियार सप्लाई कर रहा है.
विश्व पर असर:
- परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने से ईरान पर दोबारा आर्थिक प्रतिबंध लग सकते हैं जिससे वैश्विक तेल कंपनियों पर ईरान से तेल नहीं खरीदने का दबाव बढ़ेगा.
- भारत जैसे अमेरिका के करीबी देशों ने ईरान के साथ तेल पर समझौता किया है, जो डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से विवाद में आएंगे.
- अमेरिका के प्रति नफरत की भावना बढ़ेगी और ईरान परमाणु गतिविधियां बढ़ा देगा.
- इससे ईरान की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और पश्चिमी एशिया में तनाव बढे़गा.
पृष्ठभूमि:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दावा है कि ईरान उससे मिल रही परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए कर रहा है. डोनाल्ड ट्रम्प के इस फैसले का प्रभाव केवल ईरान पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा. गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने इस समझौते को एकतरफा बताते हुए इसकी आलोचना की थी. दरअसल, समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रमों में कटौती की बात कही थी जिसके बदले में उस पर लगे कई आर्थिक प्रतिबंध हटा लिए गए थे.
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