अमेरिका ओपन स्काईज संधि से पीछे हटा: इस बारे में सारी महत्त्वपूर्ण जानकारी पढ़ें यहां!

Nov 24, 2020, 18:10 IST

ओपन स्काई संधि एक ऐसा समझौता है जो इस संधि के भागीदार देशों के पूरे क्षेत्र में हथियार-रहित हवाई निगरानी उड़ानों की अनुमति देकर आपसी विश्वास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है.  

US withdraws from Open Skies Treaty: What is Treaty of Open Skies, why did US withdraw
US withdraws from Open Skies Treaty: What is Treaty of Open Skies, why did US withdraw

संयुक्त राज्य अमेरिका ने खुद को औपचारिक रूप से ‘ओपन स्काइज’ (खुले आसमान) संधि से पीछे हटा लिया है. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने 22 नवंबर, 2020 को सूचित किया है कि, अमेरिका द्वारा ओपन स्काइज संधि से पीछे हटने के फैसले के बारे में, इस संधि के सदस्य देशों को सूचित किए हुए अबतक, छह महीने से अधिक समय बीत चुका है.

एक बयान के मुताबिक, इस 22 नवंबर, 2020 को छह महीने बीतने के बाद, अमेरिका का इस संधि से पीछे हटने का फैसला अब प्रभावी हो गया है और अमेरिका अब इस ओपन स्काइज संधि में शामिल एक सदस्य देश नहीं रहा है.

ओपन स्काइज संधि क्या है?

वर्ष 1992 में इस संधि के लिए बातचीत शुरू हुई और जिसपर 1 जनवरी, 2002 को हस्ताक्षर किए गए. यह ओपन स्काइज संधि एक ऐसा समझौता है जो इस संधि में शामिल सभी सदस्य देशों के पूरे क्षेत्र में हथियार-रहित हवाई निगरानी उड़ानों की अनुमति देकर उनमें आपसी विश्वास को बढ़ावा देना चाहता है.

इस संधि पर अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, स्पेन, ग्रीस, इटली, पुर्तगाल और रूस सहित 35 देशों ने हस्ताक्षर किए थे.

ओपन स्काइज संधि से मिलने वाले लाभ

  • इस संधि के तहत, सभी सदस्य देश हवाई निगरानी के माध्यम से एक-दूसरे की सेनाओं का निरीक्षण कर सकते हैं.
  • इस संधि में शामिल सभी सदस्य देशों को अन्य सभी सदस्य देशों के पूरे क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति मिलती है और इस संधि के मुताबिक, किसी भी क्षेत्र को मेजबान राष्ट्र द्वारा ऑफ-लिमिट घोषित नहीं किया जा सकता है.
  • इस संधि के तहत, प्रत्येक देश का वार्षिक कोटा निर्धारित होता है कि, वह किसी अन्य सदस्य देश में कितनी उड़ानें भर सकता है और अपने देश में कितनी ऐसी उड़ानों को मंजूर कर सकता है. ये सभी उड़ानें बड़े पैमाने पर, इस संधि में शामिल सदस्य देशों के आकार से निर्धारित होती हैं.
  • संधि के सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को यह अधिकार है कि वे किसी भी सदस्य देश के ऊपर एक समान संख्या में अवलोकन उड़ानों का संचालन कर सकते हैं और कई सदस्य देश एक साथ मिलकर भी किसी अवलोकन उड़ान में भाग ले सकते हैं

ओपन स्काइज संधि के हस्ताक्षरकर्ता देश

इस संधि के हस्ताक्षरकर्ता देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, तुर्की, डेनमार्क, फिनलैंड, स्वीडन, क्रोएशिया, बेल्जियम, बेलारूस, बुल्गारिया, बोस्निया और हर्जेगोविना, चेक गणराज्य, नीदरलैंड, हंगरी, नॉर्वे, पोलैंड, रोमानिया, यूक्रेन, स्लोवेनिया, जॉर्जिया, एस्टोनिया, स्लोवाकिया, लातविया, लिथुआनिया, आइसलैंड और लक्जमबर्ग शामिल हैं. इसी तरह, किर्गिस्तान एकमात्र ऐसा देश है जिसने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किए हैं लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की है.

महत्व

इस ओपन स्काइज संधि का उद्देश्य अपने सभी सदस्य देशों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देना है, ताकि वे अन्य देशों के सैन्य बलों के बारे में प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने का समान अवसर हासिल  कर सकें. यह संधि अपने सदस्य देशों के सैन्य बलों की विभिन्न गतिविधियों में खुलेपन और पारदर्शिता को भी बढ़ावा देती है.

अमेरिका इस ओपन स्काइज संधि से पीछे क्यों हटा?

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मई, 2020 में यह दावा किया था कि, रूस इस संधि के मुताबिक अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है.
  • अमेरिका के अनुसार, रूस ने अबकाज़िया और दक्षिण ओसेशिया के साथ लगी अपनी सीमा के 10 किलोमीटर के गलियारे के भीतर इन अवलोकन उड़ानों की आवाजाही से इनकार कर दिया है.
  • रूस ने कैलिनिनग्राद पर इन उड़ानों की दूरी को भी सीमित कर दिया है, जहां इसकी छोटी दूरी और मध्यम दूरी की न्यूक्लियर - टिप्ड मिसाइलों का बेस स्टेशन है.
  • वर्ष 2019 में, रूस ने एक बड़े रूसी सैन्य अभ्यास पर अमेरिका और कनाडा द्वारा साझा अवलोकन उड़ान को अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
  • रूस ने क्रीमिया, यूक्रेन में एक ओपन स्काइज रिफ्युलिंग एयरफील्ड निर्दिष्ट किया है. इसे अमेरिका ने रूस द्वारा संबद्ध प्रायद्वीप पर विजय के अपने दावे को आगे बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका स्वीकार नहीं करता है.

पृष्ठभूमि

डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के बाद से इस ओपन स्काइज संधि से अमेरिका की वापसी, ऐसे किसी हथियार नियंत्रण समझौते से तीसरी बार अमेरिका का पीछे हटना है. आलोचकों ने इस कदम को अमेरिकी सहयोगियों के लिए एक बड़ा झटका बताया है, क्योंकि रूस ने अमेरिका की तुलना में अन्य यूरोपीय राज्यों की हवाई निगरानी में अधिक रुचि दिखाई है.

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इस महीने की शुरुआत में संधि में शेष नाटो सदस्यों से इस लिखित आश्वासन की मांग की थी कि, इस संधि के तहत जो भी डाटा वे इकट्ठा करेंगे उसे अमेरिका के साथ साझा नहीं किया जाएगा.

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