थ्वाइट्स ग्लेशियर, जिसे 'डूमसडे ग्लेशियर' भी कहा जाता है, के एक अध्ययन में स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग के शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि, यह ग्लेशियर पहले से अनुमानित गति से भी तीव्र गति से पिघल रहा है.
शोधकर्ताओं ने ‘रन’ नामक एक चालक दल रहित पनडुब्बी की मदद से थ्वाइट्स ग्लेशियर के नीचे समुद्र की धाराओं के तापमान, लवणता, शक्ति, और ऑक्सीजन की मात्रा को मापने में कामयाबी हासिल की.
डूम्सडे ग्लेशियर क्या है?
अंटार्कटिका में थवाइट्स ग्लेशियर को डूम्सडे (कयामत/ प्रलय का दिन) ग्लेशियर भी कहा जाता है. इसके एक बार पिघलने के बाद दुनिया को होने वाले जोखिम के कारण इसे यह नाम मिला है.
थ्वाइट्स ग्लेशियर 1.9 लाख वर्ग किलोमीटर के आकार और 120 किमी की चौड़ाई के साथ, सबसे अस्थिर पिघलने वाला ग्लेशियर है.
यह डूमसडे ग्लेशियर दुनिया के लिए खतरा क्यों है?
विभिन्न अध्ययनों से लगाये गये एक अनुमान के मुताबिक, इस ग्लेशियर के पिघलने से पश्चिमी अंटार्कटिका में अन्य बर्फ द्रव्यमानों के पिघलने का भी खतरा हो सकता है. इसके संचयी प्रभाव के कारण वैश्विक समुद्र का स्तर 10 फीट तक बढ़ सकता है और यह नीदरलैंड, मियामी और न्यूयॉर्क शहर जैसे तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर सकता है.
इस खतरनाक डाटा का अध्ययन कैसे किया गया?
• वर्ष, 2020 में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय ने एक अध्ययन किया था और ग्लेशियर के नीचे गर्म पानी की एक धारा पाई थी. इस टीम ने ग्लेशियर में एक छेद खोदा और एक संवेदन उपकरण के साथ उन्होंने गर्म पानी की धारा का तापमान हिमांक बिंदु से सिर्फ दो डिग्री अधिक दर्ज किया.
• यह अध्ययन, एक 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना के एक हिस्से के तौर पर, इंटरनेशनल थ्वाइट्स ग्लेशियर सहयोग द्वारा आयोजित किया गया, जिससे वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि, यह ग्लेशियर आने वाले 200 वर्षों से 600 वर्षों तक पिघल जाने की उम्मीद है. नतीजतन, इसके परिणामस्वरूप समुद्र का स्तर लगभग 2 फीट तक बढ़ जाएगा.
• हाल ही में हुए एक अध्ययन में स्वीडन की गॉथेनबर्ग यूनिवर्सिटी ने डाटा को एकत्रित करने के लिए थवाइट्स ग्लेशियर के नीचे एक ‘रन’ नामक चालक दल रहित पनडुब्बी को भेजा था.
यह डाटा भविष्य में कैसे मदद करेगा?
शोधकर्ताओं ने इस असाधारण कार्य को खुशखबरी बताया है क्योंकि यह पहली बार है कि, इस तरह से एकत्र किए गए डाटा से थवाइट्स ग्लेशियर की गतिशीलता की गणना करने में मदद मिलेगी. इससे शोधकर्ताओं को वैश्विक समुद्र-स्तर के बदलाव और आइस बेल्ट के आसपास के मॉडल को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
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