सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैवाहिक संबंध टूटने और तलाक के बाद भी कोई महिला अपने पूर्व पति द्वारा की जा रही ज्यादती के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में राजस्थान हाईकोर्ट के एक आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी दी. जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस आर. भानुमति और जस्टिस नवीन सिन्हा की सदस्यता वाली एक बैंच ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील खारिज करते हुए कहा कि यह आदेश में हस्तक्षेप करने को इच्छुक नहीं है.
पृष्ठभूमि |
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रेप और एसिड अटैक पीड़िताओं को मिलेगा मुआवजा: सुप्रीम कोर्ट
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005
• पीड़ित महिला इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे कि - संरक्षण आदेश, आर्थिक राहत, बच्चों के अस्थाई संरक्षण (कस्टडी) का आदेश, निवास आदेश या मुआवजे का आदेश.
• अदालत में केस शुरू होने के पश्चात, मजिस्ट्रेट को अधिकतम 60 दिनों के भीतर केस का निवारण करने की कोशिश करनी होगी.
• पीड़िता भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक की जेल हो सकती है.
घरेलू हिंसा क्या है? |
शारीरिक दुर्व्यवहार अर्थात शारीरिक पीड़ा, अपहानि या जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा या लैगिंग दुर्व्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना या अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार अर्थात अपमान, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना,मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं. |
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