अमेरिका का क्यूरियोसिटी रोवर मंगल ग्रह पर गेल क्रेटर में 4.8 किलोमीटर ऊंचे और 154 किमी चौड़ाई के टीले के तल पर 6 अगस्त 2012 को सुरक्षित उतरा. यह अभियान दूसरे अभियानों से अलग है क्योंकि रोवर को मंगल पर सुरक्षित उतारने के लिए रॉकेटों की मदद से चलने वाली क्रेन की सहायता ली गई. अभी तक मशीनें समतल जगह पर ही उतारी जाती रही हैं ताकि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे.
भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ घोष भी क्यूरियोसिटी रोवर अभियान से जुड़े हुए हैं. वह नासा के मार्स अन्वेषण रोवर मिशन में साइंस ऑपरेशन वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष हैं. इसी टीम ने क्यूरियोसिटी के मंगल पर उतरने के लिए जगह तय की.
क्यूरियोसिटी रोवर का उद्देश्य
• जीवन के लिए आधार माने जाने वाले रासायनों का पता लगाना.
• मृदा और चट्टानों के बनने की प्रक्रिया पर शोध करना.
• चार अरब वर्ष में मंगल के मौसम में आए बदलावों का पता लगाना.
• मंगल की सतह पर मौजूद खनिजों के बारे में जानकारी देना.
• सतह तक पहुंचने वाले विकिरणों यथा, कॉस्मिक रेडिएशन के स्तर को जानना.
• कार्बन डाइऑक्साइड और जलचक्र की स्थिति का पता लगाना.
क्यूरियोसिटी रोवर
क्यूरियोसिटी रोवर नासा द्वारा संचालित एक अंतरिक्ष अभियान है. इसके तहत मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को खोजा जाना है. इस अभियान पर लगभग 2.5 अरब डॉलर की लागत आई है. इस यान को 26 नवंबर 2011 को छोड़ा गया था और लगभग 24 हजार करोड मील की दूरी तय कर यह मंगल ग्रह पर 6 अगस्त 2012 को उतरा है. यह रोवर 2012 से 2014 तक सूचनाएं भेजेगा. इस मिशन में मंगल के मौसम, वातावरण और भूगोल की जांच होगी. क्यूरियोसिटी रोवर एक 900 किलो की प्रयोगशाला है. छह पहियों का यह रोवर छोटे पत्थरों को तोड़ने, मिट्टी और विकिरण की जांच करने में सक्षम है. यह अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए बनाया गया वर्ष 2012 तक का सबसे बडा रोवर है.
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