अर्जेन्टीना के जॉर्ज मारियो बर्गोगलियो (Jorge Mario Bergoglio) को रोमन कैथोलिक चर्च का 266वां पोप वैटिकन सिटी में 13 मार्च 2013 को निर्वाचित किया गया. जॉर्ज मारियो बर्गोगलियो ने अपना नाम पोप फ्रांसिस प्रथम रखा. पोप चुने जाने से पहले वह अर्जेन्टीना के कार्डिनल थे. पोप के चुनाव में 115 कार्डिनल ने भाग लिया. भारत से भी 5 कार्डिनल इस प्रक्रिया में शामिल थे. पोप के रूप में चयन किए जाने के बाद सबसे पहले उन्होंने ऐतिहासिक सेंट पीटर्स बैसिलिका की बालकनी में आकर वहां मौजूद लोगों को संबोधित किया.
जॉर्ज मारियो बर्गोगलियो से संबंधित मुख्य तथ्य
• वह लैटिन अमेरिकी देश के पहले व्यक्ति हैं जो पोप बने हैं.
• वेटिकन के इतिहास में पहली बार कोई अर्जेन्टीना निवासी पोप बने हैं. जॉर्ज मारियो बर्गोलियो के इटली मूल के पिता अर्जेंटीना माइग्रेट कर गए थे. इसके अलावा वह पहले फ्रांसिस ही नहीं, पहले जेसुइट पोप भी हैं.
• पोप फ्रांसिस पहले गैर यूरोपीय पोप हैं. वैसे वर्ष 731 में सीरिया में रहने वाले पोप ग्रेगरी थर्ड भी पोप बने थे.
• पोप फ्रांसिस के सिर्फ एक फेफड़ा है. जब वह किशोरावस्थाब में थे, उन्हेंे गंभीर बीमारी हो गई थी जिसकी वजह से उनका एक फेफड़ा निकालना पड़ा.
• गे मैरिज और अडॉप्शफन के विरोधी रहे पोप फ्रांसिस प्रशिक्षत केमिस्टह भी हैं.
• पोप फ्रांसिस ने पादरी बनने के लिए अर्जेंटीना और जर्मनी में पढ़ाई की और वर्ष 1962 में बिशप बने. वह वर्ष 1998 में ब्यूनस आयर्स के कार्डिनल चुने गए.
• जॉर्ज मारियो बर्गोगलियो ने पोप बेनेडिक्ट 16वें का स्थान लिया. पोप बेनेडिक्ट 16वें ने अपने पद से 28 फरवरी 2013 को इस्तीफा दिया था.
• 76 वर्षीय जॉर्ज मारियो बर्गोगलियो ने अपना जीवन अर्जेंटीना में गुजारा है.
• वर्ष 2005 में जब पोप बेनेडिक्ट 16वें को पोप चुना गया था, तब जॉर्ज मारियो बर्गोगलियो दूसरे स्थान पर रहे थे.
• उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को ब्यूनस आयर्स में हुआ था.
रोमन कैथोलिक चर्च के पोप के चुनाव की प्रकिया
• वेटिकन सिटी में पोप को चुनने की प्रक्रिया के तहत विश्व-भर से चुने गए कार्डिनल्स को वेटिकल सिटी बुलाया जाता है. इन सभी की उम्र 80 वर्ष से कम होनी चाहिए.
• पोप चुनने की पूरी कवायद आठ चरणों में पूरी होती है. सबसे पहले सारे कार्डिनल्स चैपल में इकट्ठा होते हैं.
• तीन-तीन कार्डिनलों के तीन समूह बनाए जाते हैं, पहला ग्रुप बैलेट पेपर की गिनती करता है. दूसरा ग्रुप दोबारा गिनती करता है, जबकि तीसरे ग्रुप कार्डिनलों से वोटिंग के बाद बैलेट इकट्ठे करता है.
• इसके बाद शुरू होता है वोटिंग का काम. प्रत्येक कार्डिनल शपथ लेकर बैलेट पर अपनी पसंद का नाम लिखता है और फिर उसे एक प्लेट में रख देता है. कार्डिनलों की पहली टीम का एक मेंबर यह तय करता है कि सारे वोटर अपना वोट डाल दें. इसके बाद दूसरा मेंबर बैलेट का नाम नोट करते दूसरे मेंबर को देता है. दूसरा मेंबर भी यही काम करके तीसरे मेंबर को देता है.
• तीसरे कार्डिनल की जिम्मेदारी होती है कि वह दूसरे मेंबर के नाम को जोर से बोलकर सबको बताए और फिर उसे सुई से एक धागे में पिरो दे. वोटिंग की यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को दो तिहाई यानी 77 वोट नहीं मिल जाते.
• बार के वोटिंग में इकट्ठा बैलेट को विशेष रसायन के साथ भट्टी में डाल दिया जाता है, जिसको जलाने पर चिमनी से काला धुंआ निकलता है. जिसका मतलब है कि पोप का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है.
• पोप के चयन की यह प्रक्रिया पूरी हो जाने पर बैलेट पेपर बिना केमिकल के जला दिए जाते हैं जिससे चिमनी से सफेद धुआं बाहर आता है. चुनाव के बाद पोप को अपना नया नाम भी चुनना पड़ता है, लेकिन उन्हे अपने से पहले वाले पोप का नाम रखने की मनाही होती है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation