इंग्लैंड के गिरिजाघरों ने जनवरी 2015 के अंत में ‘ह्यूमैन फर्टिलाइजेशन एवं एम्ब्रॉयोलॉजी एक्ट 1990’ में प्रस्तावित संशोधन का विरोध करना शुरू कर दिया. इसके तहत आईवीएफ बच्चों का जन्म तीन विभिन्न व्यक्तियों के डीएनए से करा सकने की अनुमति है. इस तकनीक को माइटोकोंड्रियल तकनीक कहते हैं.
दि चर्च ऑफ इंग्लैंड और कैथोलिक चर्च ऑफ इंग्लैंड ने इसका विरोध किया है. इसका कारण यह है कि वो यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि इसके तहत दाता महिला की माइटोकोंड्रिया का दूसरी महिला के अंडों का जोड़ सुरक्षित और नैतिक होगा या नहीं.
अंतर्राष्ट्रीय साइंटिफिक समुदाय भी इस प्रक्रिया को सुरक्षित और प्रभावी मानने के बारे में एकमत नहीं है और दूसरे देशों में भी इस तकनीक को अनुमति नहीं दी गई है.
नैतिकता के आधार पर उनका मत है कि इस प्रक्रिया में मानव भ्रूण नष्ट हो जाता है. वैज्ञानिकों का एक समूह यूनाइटेड किंगडम के संसद सदस्यों को इस तकनीक को अनुमति देने के लिए राजी करने की कोशिश में लगे हैं. उनके अनुसार यह तकनीक माइटोकोंड्रिया से होने वाली बीमारियों की रोकथाम में सहायक होगी.
क्या है माइटोकोंड्रिया दान की तकनीक-
न्यूकैसल विश्वविद्यालय में विकसित की गई माइटकोंड्रिया दान की इस तकनीक में दाता महिला की स्वस्थ माइटोकोंड्रिया को दूसरी महिला से प्राप्त अंडाणुओं के साथ जोड़ा जाता है. इसके बाद इसे पुरूष के शुक्राणुओं के साथ फर्टिलाइज कराया जाता है. इस प्रक्रिया में माइटकोंड्रिया को माँ से शिशु में भेजा जाता है.
यह तकनीक वर्ष 2007 से ही अस्तित्व में है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी प्रशंसा हुई है.
माइटोकोंड्रिया क्या है-
माइटोकोंड्रिया शरीर की कोशिकाओं के भीतर पाई जाती है. यह कोशिकाओं के लिए उर्जावान मोलिक्यूल का सृजन करती है. इसे कोशिकाओं का पॉवरहाउस भी कहा जाता है क्योंकि ये भोजन में बंद उर्जा को उस उर्जा में बदलती है जिसका प्रयोग कोशिकाएँ अपने लिए करती हैं.
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