इतिहासकार और भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के संस्थापक अध्यक्ष रामशरण शर्मा का लंबी बीमारी के बाद पटना के एक निजी अस्पताल में 20 अगस्त 2011को निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. उन्होंने अपनी पीएचडी लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ से प्रोफ़ेसर आर्थर लेवेलिन बैशम के अधीन पूरी की. पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख बनने के बाद रामशरण शर्मा ने 1970 के दशक में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डीन के रूप काम किया. वह भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च) के संस्थापक अध्यक्ष भी थे. भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की स्थापना 1972 में की गई थी. रामशरण शर्मा ने टोरंटो विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया. वह लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ में एक सीनियर फेलो, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नेशनल फेलो और 1975 में इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ कराए जाने का निर्णय लिया. रामशरण शर्मा का जन्म 1919 में बिहार के बेगूसराय में हुआ था. उन्हें वर्ष 1989 में जवाहरलाल नेहरू अवार्ड तथा बंबई एशियाटिक सोसायटी द्वारा वर्ष 1987 में कैम्पबेल मेमोरियल गोल्ड मेडल प्रदान किया गया. उनकी पुस्तक प्राचीन भारत को कृष्ण की ऐतिहासिकता और महाभारत महाकाव्य की घटनाओं की आलोचना के लिए 1978 में जनता पार्टी सरकार की ओर से प्रतिबंधित कर दिया गया था.
रामशरण शर्मा ने पंद्रह भाषाओं में सौ से अधिक किताबें लिखीं. उनमें से कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें निम्नलिखित है. आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता, भारतीय सामंतवाद, शूद्रों का प्राचीन इतिहास, प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएं, भारत के प्राचीन नगरों का इतिहास. आर्यों की खोज, प्रारंभिक मध्यकालीन भारतीय समाज: सामंतीकरण का एक अध्ययन और कम्युनल हिस्ट्री एंड रामा'ज अयोध्या.
अयोध्या विवाद पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा था जिसको लेकर देश भर में बहस छिड़ गयी थी. वर्ष 2002 के गुजरात दंगों को युवाओं की समझ बढ़ाने के लिए सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषय बताते हुए इसे विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करने का समर्थन किया था. रामशरण शर्मा की टिप्पणी के बाद ही एनसीईआरटी ने गुजरात के दंगों और अयोध्या विवाद को 1984 के सिख विरोधी दंगों के साथ बारहवी कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तकों में शामिल करने का फैसला किया, जिसका तर्क यह दिया गया कि इन घटनाओं ने आजादी के बाद देश में राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित किया था.
इनकी लिखी गयी प्राचीन इतिहास की किताबें देश की उच्च शिक्षा में काफ़ी अहमियत रखती हैं. प्राचीन इतिहास से जोड़कर हर सम-सामयिक घटनाओं को जोड़कर देखने में शर्मा को महारथ हासिल थी. रामशरण शर्मा के द्वारा लिखी गयी प्राचीन भारत के इतिहास को पढ़कर छात्र संघ लोक सेवा आयोग जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी करते हैं.
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