केंद्र सरकार ने 5 सितंबर 2015 को पूर्व सैनिकों के लिए एक रैंक एक पेंशन (ओआरओपी) योजना की घोषणा की. यह योजना पिछले चार दशकों से विचाराधीन थी.
इस योजना की घोषणा फरवरी 2014 में हो चुकी थी लेकिन इसके विभिन्न आयामों के अपूर्ण होने के कारण इसे लागू नही किया गया था.
एक रैंक एक पेंशन (ओआरओपी)
साधारण शब्दों में ओआरओपी का अर्थ है कि एक ही रैंक पर, एक ही समयवधि तक सेवा में रहने के बाद सेवानिवृत होने वाले सैनिकों की पेंशन भी एक ही होगी.
वर्तमान में, पूर्व सैनिक सेवानिवृत होने के समय के अनुसार पेंशन प्राप्त करते हैं जो कि एकसमान नहीं है.
इनका वेतन साधारणतया वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर संशोधित किया जाता है जिससे भुगतान में अंतर भी मौजूद रहता है. उदाहरण के रुप में जो सैन्यकर्मी 1990 में सेवानिवृत हुआ वह 2006 में अपने से जूनियर सैनिक की तुलना में कम पेंशन प्राप्त करता है जबकि दोनों ने एक ही रैंक पर, एक समान समयावधि तक सैन्य सेवा में कार्य किया है.
ओआरओपी की विशेषताएं
सेवानिवृत होने वाले सभी सैन्य कर्मियों की पेंशन फिर से निर्धारित की जाएगी तथा वर्ष 2013 की अधिकतम एवं न्यूनतम पेंशन के आधार पर इसकी गणना की जाएगी.
सभी सैन्य इकाइयों के पूर्व सैनिकों को 1 जुलाई 2014 से इसका लाभ मिलेगा.
औसत से अधिक पेंशन प्राप्त करने वाले पेंशन भोगियों की पेंशन बनायी रखी जाएगी.
भविष्य में प्रत्येक पांच वर्ष बाद पेंशन निर्धारित की जाएगी.
बकाया राशि का चार छमाही किश्तों में भुगतान किया जाएगा.
सभी विधवाओं, जिसमें युद्ध में मारे गये सैनिकों की विधवा पत्नियां भी शामिल हैं, को एक किश्त में ही राशि का भुगतान किया जायेगा.
स्वेच्छा से सेवानिवृति (वीआरएस) लेने वाले सैनिकों को इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा.
सरकारी खजाने पर इसका 8000 से 10000 करोड़ रूपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
इस योजना के लागू करने से संबंधित विवादों के लिए सरकार ने एक सदसीय न्यायिक समिति बनाने की घोषणा की है जो अगले छह महीने में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी.
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