क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक संशोधन बिल 2014 राज्यसभा में 28 अप्रैल 2015 को पारित हो गया. इसी के साथ इस बिल को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गयी है. यह अध्यादेश लोक सभा में 18 दिसम्बर 2014 को ही पारित हो गया था.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक संशोधन बिल,  2014 से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) अधिनियम 1976 में संशोधन किया जा सकेगा. यह बिल वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत किया गया. 
अध्यादेश के मुख्य तथ्य
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) अधिनियम 1976,  लागू होने से क्षेत्रीय बैंकों का विनियमन, समापन और संयोजन किया जा सकेगा.
इस अधिनियम के लागू होने से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर पड़ने वाले प्रशिक्षण के बोझ को भी कम किया जा सकेगा. अभी पहले पांच साल तक कार्मिक प्रशिक्षण,  प्रबंधकीय और वित्तीय सहायता प्रदान करने का उत्तरदायित्व भी प्रायोजक बैंकों पर था. 
इस अधिनियम से आरआरबी की अधिकृत पूंजी को 2000 करोड़ तक बढाने और एक करोड़ रूपये से कम न करने का भी प्रावधान होगा. आरआरबी अधिनियम 1976 के तहत यह पूंजी अधिक से अधिक पांच करोड़ और 25 लाख की निम्नतम सीमा तक थी. 
यह अधिनियम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पूंजीगत सीमा 25 लाख रुपये से एक करोड़ रुपए के स्लॉट को बढ़ाकर कम से कम एक करोड़ करने की अनुमति देता है.
इस संशोधन के बाद अब क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्रायोजित बैंक  केंद्रीय और राज्य सरकारों के अलावा अन्य श्रोतों से भी पूँजी बढाने की आजादी होगी. अब तक ये बैंक केंद्र व राज्य सरकारों और प्रायोजकों पर निर्भर थे. जिसमें 50% केंद्र सरकार, 15% राज्य सरकार और 35% प्रायोजक बैंकों की हिस्सेदारी थी. 
बिल में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को यह भी सुविधा दी गयी है कि अन्य श्रोतों से पूँजी बढाने के मामले में केंद्र और प्रायोजक बैंकों की भागीदारी 51% से कम न हो.
यदि कोई राज्य सरकार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में अपनी हिस्सेदारी 15% से कम करना चाहे तो केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार से परामर्श करेगी.
यह बिल संघीय सरकार को अधिकार देता है कि वह केंद्र सरकार, राज्य सरकार और प्रायोजक बैंकों को सूचित करके क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में उनकी भागीदारी कम और अधिक कर सकती है. ऐसा करने में केंद्र सरकार,  राज्य सरकार और प्रायोजक बैंकों से परामर्श करेगी.
संशोधन के अनुसार कोई व्यक्ति आरआरबी का निदेशक है तो वह किसी दूसरे आरआरबी निदेशक बोर्ड का निदेशक नहीं हो सकता. जबकि अधिनियम के अनुसार आरआरबी का निदेशक केंद्रीय सरकार के माध्यम से नियुक्त, नाबार्ड, बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक,आदि का अध्यक्ष और निदेशक हो सकता है. 
बिल लागू होने के बाद आरआरबी का निदेशक उसके हिस्सेदारों के पूंजीगत निवेश,  उसके शेयरों के आधार पर चुना जायेगा.
a. दस प्रतिशत के हिस्सेदारों को एक निदेशक चुनने का अधिकार होगा .
b. हिस्सेदारों द्वारा दो निदेशक चुनने का अधिकार 10% से 25%. पूंजीगत निवेशकों को होगा 
c.  25% और उससे अधिक पूंजीगत शेयर धारक तीन निदेशक चुन सकेंगे.
d. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के क्रिया कलापों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये आवश्याकता पड़ने पर केंद्र सरकार निदेशक मंडल में एक अधिकारी नियुक्त कर सकती है.
संशोधन के बाद एक निदेशक का कार्यकाल (अध्यक्ष पद को छोड़कर) तीन साल के लिए हो सकता है. इसमें यह भी प्रावधान है कि कोई भी निदेशक पूरे छह साल तक कार्यालय का उपयोग नहीं कर सकता. अधिनियम यह भी स्पष्ट करता है कि (अध्यक्ष को छोड़कर) एक निदेशक का कार्यकाल दो साल से अधिक नहीं होना चाहिए ।
अधिनियम एक वित्तीय वर्ष में एकरूपता लाने के लिए बही खाता बंद करने के समय 31 मार्च में भी परिवर्तन करता है. 1976 के अनुसार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लेखा बही प्रति वर्ष 31दिसम्बर को बंद होने चाहिए.
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