गंगा में औद्योगिक अपशिष्ट डालने से रोकने हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश

Oct 31, 2014, 18:20 IST

सर्वोच्च न्यायालय ने गंगा में औद्योगिक अपशिष्ट डालने से रोकने हेतु 29 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) को निर्देश दिया.

सर्वोच्च न्यायालय ने गंगा में औद्योगिक अपशिष्ट डालने से रोकने हेतु 29 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) को निर्देश दिया. न्यायालय ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को इस कार्य हेतु औद्योगिक इकाइयों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने के लिए मार्च 2015 की समय सीमा निर्धारित की.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर, आदर्श गोयल और आर भानुमति की खंडपीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) को गंगा में प्रदूषण को रोकने में नाकाम रहने के लिए, इनकी आलोचना की.

विदित हो कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने 17 अक्टूबर 2014 को गंगा में प्रदूषण फैलाने वाली सिंभौली शुगर मिल्स पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया. राष्ट्रीय हरित अधिकरण के चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला दिया. इस सन्दर्भ में अधिकरण ने कहा कि ‘शुगर मिल ने जानबूझकर सोशल कॉरपोरेट रिस्पॉन्सिबिलिटी से बचने की कोशिश की और गंगा को प्रदूषित किया.’ उन्होंने मिल को पांच करोड़ रुपए की जुर्माना राशि उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल में जमा करने का निर्देश दिया. यह पैसा ग्राउंड वाटर प्रिवेंशन पर खर्च होगा.
 
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) से संबंधित मुख्य तथ्य
 
राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिए ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010’ के अंतर्गत की गई.
 
राष्ट्रीय हरित अधिकरण प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों को संभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित संस्था है.

राष्ट्रीय हरित अधिकरण के संचालन से संबंधित मुख्य बिंदु  

• अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं होगा, लेकिन नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाएगा.
• पर्यावरण संबंधी मामलों में अधिकरण का समर्पित क्षेत्राधिकार तीव्र पर्यावरणीय न्याय प्रदान करेगा तथा उच्च न्यायालयों में मुकदमेबाज़ी के भार को कम करने में सहायता करेगा.
• अधिकरण को आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के 6 महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करने का कार्य सौंपा गया है.
• अधिकरण की बैठक का प्रधान स्थल नई दिल्ली होगा तथा भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई अधिकरण की बैठकों के अन्य 4 स्थल होंगे.

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