इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित 60वां एशिया अफ्रीका शिखर सम्मेलन 23 अप्रैल 2015 को समाप्त हो गया.
सम्मेलन के दौरान एशिया और अफ्रीका के नेताओं ने बहुपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न प्रस्तावों को आपस में साझा किया.
सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी मौजूद थे जबकि भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह ने किया.
सम्मेलन के समापन समाहरोह में मेजबान देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने तीन महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर मंजूरी की पुष्टि की.
ये प्रस्ताव हैं- बांडुंग संदेश 2015, नयी एशिया अफ्रीका रणनीतिक भागीदारी का गठन, फिलिस्तीन की आज़ादी का समर्थन.
बांडुंग संदेश 2015 और नयी एशिया अफ्रीका रणनीतिक भागीदारी का उद्देश्य वैश्विक चुनौतियों में आपसी संबंधों को मजबूत करना है. साथ ही मानव अधिकारों की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना.
शिखर सम्मेलन के सह अध्यक्ष जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे हैं.
सम्मेलन में सदस्य देशों ने आतंकवाद से मुकाबला करने और मानवाधिकार की रक्षा करने के लिए सहयोग के ठोस स्वरूप विकसित करने की प्रतिबद्धता दिखायी.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह की अगुवाई में भारत ऐतिहासिक 1955 एशियाई- अफ्रीकी सम्मेलन क 60 वीं बैठक में हिस्सा लिया. इस सम्मेलन के बाद से ही शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी.
दोनों महाद्वीपों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए 50 से ज्यादा देश और 23 राष्ट्रप्रमुखों ने इस सम्मेलन में भाग लिया. इन दोनों महाद्वीपों में दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी रहती है जिसका वैश्विक जीडीपी में 30 प्रतिशत योगदान है. प्रस्ताव में देशों ने संगठित आतंकवाद और इससे विकास, राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर भी चर्चा की .
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